SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 688
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पना की है कि अमरुक केवल दाक्षिणात्य ही नहीं अपितु चालुक्य राजधानी वातापि (आधुनिक बादामी ) का निवासी था । किन्तु उनकी यह धारणा समीचीन प्रतीत नहीं होती । इसके विपरीत अमके नामकी ध्वनि जो शक जैसे नामोंसे मिलती जुलती है और इस तथ्यसे कि अमरुकका सनाम उल्लेख और उसके श्लोकोंको उद्धृत करने वाले प्राचीनतम काव्यशास्त्री कश्मीरी थे, ऐसा लगता है कि अमरुक भी कश्मीरी या किन्तु निश्चित प्रमाणोंके अभाव में इस सम्बन्धमें कोई भी मत पूर्णतः प्रामाणिक नहीं माना जा सकता । ४. पीटर्सन द्वारा अमरुशतककी एक टीकासे उद्धृत एक श्लोकके अनुसार अमरुक जातिसे स्वर्णकार था । यद्यपि यह असम्भव नहीं है तथापि इस विषय में निश्चित रूपसे कुछ भी कहना कठिन है क्योंकि अमरुकके कई शताब्दियों पश्चात् हुए इस टीकाकारको कविके जीवन विषयक सत्य जानकारी थी या नहीं, यह जानने का कोई साधन नहीं है । 3 ५. अमरुकने अपने शतकके प्रथम श्लोक में अम्बिका और दूसरे श्लोक में शम्भुकी वन्दना की है । अतः यह निर्विवाद रूपसे कहा जा सकता है कि वह शैव था। ६. अमरुकका सनाम उल्लेख सर्वप्रथम आनन्दवर्धन ( ई० ८५० के आसपास) ने किया है । उसके समयमें अमरुकके महान् यशको देखते हुए लगता है कि वह आनन्दवर्धनसे बहुत पहिले हुआ। इसके पूर्व वामन ( ई०८००) ने बिना कवि और उसकी रचनाका उल्लेख किये अमरुशतक से तीन लोक उद्धृत किये हैं ।" इससे यह सूचित होता है कि अमरुकका काल आठवीं शताब्दी के पूर्वार्धके पश्चात् नहीं रखा जा सकता । सम्भव है कि वह बहुत पहले रहा हो । ७. अमरुक शतक एकाधिक संस्करणोंमें उपलब्ध है । आर० साइमनने इस प्रश्नका विस्तृत अध्ययन कर अधोलिखित चार संस्करणोंका उल्लेख किया है जो एक दूसरेसे श्लोक सङ्ख्या और श्लोक क्रममें भिन्न है १. वेम भूपाल और रामानन्दनाथकी टीका सहित दाक्षिणात्य संस्करण, २. रविचन्द्र की टीका सहित पूर्वी अथवा बंगाली संस्करण, ३. अर्जुनवर्मदेव' और कोक सम्भव' की टीका सहित पश्चिमी संस्करण, तथा १. चि० रा० देवघर, अमरुशतक मराठी अनुवाद, प्रस्तावना, पृ० ५ । २. विश्वप्रख्यातनाडिन्धमकुलतिलको विश्वकर्मा द्वितीयः । ३. अमरुक द्वारा विशिखा = स्वर्णकारोंकी गली ( वेमभूपालका श्लोक क्र०८७) और सन्दंशक = संड़सी (अर्जुन वर्मदेवका श्लोक ७४ ) में श्री देवधर इस कथन की पुष्टि पाते हैं। ४. द्रष्टव्य-पाद टिप्पणी - २ । , ५. काव्यालङ्कार सूत्रवृत्ति, ३-२-४ ४-३-१२; ५-२-८ ॥ ६. देवधर द्वारा सम्पादित, पूना, १९५९ । ७. वैद्य वासुदेव शास्त्री द्वारा सम्पादित, बम्बई वि० सं० १९५० । 1 ८. काव्यमाला, सङ्ख्या १८, दुर्गाप्रसाद व परम द्वारा सम्पादित्त, द्वितीय आवृत्ति, बम्बई, १९२९ । भाण्डारकर प्राच्य विद्या प्रतिष्ठानकी पत्रिका, खण्ड ३९, १०२२७ ९. चि० रा० देवधर द्वारा सम्पादित २६५) खण्ड ४० ५० १६-५५ । भाषा और साहित्य : १९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy