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________________ और दान में दी जानेवाली भुमि आदिका बिस्तारसे उल्लेख होता है। जैसे भूमिकी सीमायें अंकित रहती है। उसके पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिणमें जिन-जिनके खेत या राजपथ होता था उनके नाम दिये रहते है। खेतकी संख्या या स्थानीय नाम भी दिया जाता है। ऊनालू सियाल आदि शाखोंसे जो लगान लिया जाता है उसका भी कभी-कभी उल्लेख रहता है। खेतकी लम्बाई भी कभी-कभी दर्ज रहती है। जैसे ५ हल, आदि । प्रत्येक हलमें ५० बीघा जमीन मानी जाती है। इसके बाद कुछ श्लोक जैसे “आपदत्तं परदत्तं" आदिसे शुरू होनेवाले होते हैं। इनमें वर्णित है कि यह दान शाश्वत रहे और इनको अगर कोई भंग कर देवे तो विष्ठामें कीड़ेके रूपमें उत्पन्न होवे आदि । इसके बाद "दूतक" का नाम होता है जिसके द्वारा उक्त दान दिया जाता है। ये लेख सामान्यत: एक या अधिक ताम्रपत्रोंपर उत्कीर्ण होता है। एकलिंग मन्दिरका महाराणा भीमसिंहका ताम्रपत्र जो लगभग ४ फुट लम्बा है एक अपवाद स्वरूप है। इस लेखमें समय-समयपर दिये गये दानपत्रोंको एक साथ लिख दिया गया है। राजा लोग दान मुख्यरूपसे किसी धार्मिक पर्व जैसे संक्रान्ति, सूर्यग्रहण आदि अवसरपर देते थे। इसके अतिरिक्त पुत्र जन्म, राज्यारोहण, पूजा व्यवस्था, विशिष्ट विजय रथयात्रा आदि अवसरोंपर भी दान देते थे। मेवाड़में महाराणा रायमल और भोमसिंहके समय बड़े दानपत्र मिलते हैं। रायमलके समयके दानपत्रोंमें कई जाली भी हैं | भीमसिंह दान देने में बड़े प्रसिद्ध थे। छोटी-छोटी बातोंपर दान दिये गये हैं। कई लोगोंने पुराने दानपत्र खोनेका उल्लेख करके नये दानपत्र बनवाये हैं । इनमें "भगवान राम रो दत्त" कह करके दानपत्र ठीक किये गये हैं। दानपत्रोंका विधिवत् रेकार्ड जाता रहा था। "अक्ष पलिक" नामक अधिकारीका उल्लेख प्राचीन लेखोंमें मिलता है । यह दानपत्रोंका रिकार्ड रखता था। इन दानपत्रोंके साथ-साथ कुछ ऐसे लेख भी मिले हैं जिनमें कुछ अधिकारियोंने अपनेको प्राप्त राशि जैसे तलाराभाव्य, आदिसे मंडपिकासे सीधा दान दिलाया है। सुरहलेख एक प्रकारका आज्ञापत्र है। इसमें ऊपर सूरज चाँद बना हुआ है स्त्री और गन्दर्भ बना रहता है। सं० ११०४ का लेख टोकरा (आबू) से मिला है।' सं०१२२८ का लेख चंद्रावतीसे मिला है। कुम्भारियाजीसे सं० १३१२ और १३३२ के सुरहलेख मिलते हैं। जिनमें ग्रामके ५ मंदिरोंकी पूजाके निमित्तदान देनेको व्यवस्था है। बाजणवाला (गिरवरके पास) ग्राममें १२८७ का सुरहलेख है जिसपर राज-राजेश्वर आदि शब्द ही पढ़े जा सके है। आबूके अचलेश्वर मंदिरके बाहर कई सुरहलेख लग रहे हैं। इनमें सं० १२२३, १२२८, १३९८ १५०९ आदिके लेख उल्लेखनीय हैं । मडार ग्राममें बाहर जैराजके चौतरेके पास सं० १३५२ का वीसलदेव द्वारा दान देनेका उल्लेख है। सं० १५०६ के सुरहलेख महाराणा कुम्भाके आबूमें देलवाड़ा, माध्व, गोमुख और आबूरोड (रेल्वे हाईस्कूल) से मिले हैं । सं० १६५९ भादवा "शुक्का ७ का नाणाग्राममें सुरहलेख हैं इसमें मेहता नारायणदास द्वारा दान देनेका उल्लेख है । बरकानाके जैन मंदिर सं० १६८६ और १८ वीं शताब्दीके २ लेख महाराणा जगतसिंह (i) और (ii) के समयके हैं । चित्तौड़में रामपोलसे सं० १३९३-१३९६ के बणबीरके सुरहलेख,६ महाराणा आरीसिंहके समयका कालिका १. अर्बुदाचल प्रदक्षिणा पृ० ११४ । २. उक्त पृ० १४।। ३ वरदा वर्ष १३ अंक २ में प्रकाशित मेरा लेख "अचलेश्वर मन्दिरके शिलालेख" । ४. महाराणा कुम्भा पृ० ३९२-९३ । ५. अर्बुदाचल प्रदक्षिणा लेख संदोह II पृ० ३६२ । ६ वरदामें प्रकाशित मेरा लेख महाराणा बणवीरके अप्रकाशित शिलालेख । इतिहास और पुरातत्त्व : १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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