________________
सिद्धान्ताचार्य, इतिहासरत्न, विद्यावारिधि श्री अगरचन्द नाहटा
श्रीमती गुणसुन्दरी बाँठिया, एम० ए०,
कानपुर
" आतो स्वर्गां ने शरमावें, इणपर देव रमणने आवे । इण रो यश नर-नारी गावें, धरती धोरांरी, मीराँरी, भगराँरी ।”
ऐसी यशस्विनी भूमि है राजस्थानकी । प्रकृतिने इस वीर भूमि का अद्भुत रंगोंसे शृङ्गार किया है । एक तरफ हरे-भरे मैदान और आकाशको छूती -सी पर्वत श्रृंखलाएँ हैं तो दूसरी तरफ पठार और विशाल मरु - प्रदेश इसकी शोभा में चार चाँद लगा देते हैं। यह भूमि प्राकृतिक सौन्दर्यकी स्वामिनी होने के साथ-साथ महान कवियों, विद्वानों, सन्तों और कलाकारोंकी भी जननी रही है । इसी मरुभूमि की अनमोल प्रतिभा हैं। श्री अगरचन्द नाहटा ।
नाहटाजी में लक्ष्मी और सरस्वतीका अनूठा संगम है । दोनों माताओंके समान रूपसे दुलारे हैं । नाहटाजी अतुल धनराशिके होते हुए भी आप साधू-सा जीवन जीते हैं । आपका जन्म वि० स० १९६७के चैत वदी ४को बीकानेरमें हुआ । १७ वर्षकी अल्पायु में ही आपमें साहित्य और कलाके प्रति अद्भुत रुचिका विकास हुआ । विगत ४५ वर्षों में आपके ४५ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। तीन सौ पत्र-पत्रिकाओं में इनके पाँच हजारसे भी अधिक महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित हो चुके हैं ।
लेखक और सम्पादकके साथ-साथ आप बहुत बड़े संग्राहक भी हैं । आपके अभय जैन ग्रन्थालय में पचास हजार हस्तलिखित और इतनी ही मुद्रित, अर्थात एक लाख ग्रन्थोंका महत्त्वपूर्ण संग्रह है । अपने पिताश्री की स्मृति में स्थापित सेठ शंकरदान नाहटा कला भवनमें तीन हजार प्राचीन चित्र, सैकड़ों सिक्के, प्राचीन प्रतिमाएँ और नानाविध कलाकृतियोंका विशिष्ट संग्रह हैं ।
आपकी साहित्य और कलाकी सेवाओंसे प्रभावित होकर जैन साहित्य भवन, आराने आपको बिहार के राज्यपालकी अध्यक्षता में "सिद्धान्ताचार्य' की पदवीसे सम्मानित किया । इन्टरनेशनल एकाडमी ऑफ जैन कल्चरने आपको "विद्यावारिधि से विभूषित किया। श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ ने " इतिहास - रत्न" की पदवीसे विभूषित कर आपका गौरव बढ़ाया । बम्बईकी श्रीमान सूरिसारस्वत समारोहकी विद्वत् परिषदने आपको " पद्म भूषण" की उपाधि प्रदान की ।
१८ वर्षकी अल्पायुमें आपने 'विधवा - कर्त्तव्य' नामक ग्रन्थ लिखा । इसके पश्चात् तो आपके निबन्ध और ग्रंथ लेखनको प्रवृत्ति सदा चालू रही । आपके द्वारा लिखित ग्रंथोंमेंसे 'प्राचीन काव्य रूपोंकी परंपरा', 'युगप्रधान जिनचन्दसूरि', 'बीकानेर जैन लेख संग्रह', 'हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज', 'प्राचीन ऐतिहासिक काव्य' और, राजस्थानी साहित्यकी गौरवपूर्ण परंपरा, विशेष उल्लेखनीय हैं ।
अनेक विद्वानों द्वारा लिखित ग्रंथोंकी आपने प्रस्तावना लिखी। हजारों अज्ञात रचनाओं का परिचय साहित्य - जगतको कराया । सैकड़ों शोधछात्रोंको मार्गदर्शन और साहित्य - सामग्री दे रहे हैं । हस्तलिखित प्रतियोंकी खोज और नवीन जानकारी प्रकाशमें लाते रहना तो आपका व्यसन-सा हो गया है । श्री अभय जैन ग्रन्थालय में हजारों अज्ञात एवं अनन्य अप्राप्य रचनाओंका आपने संग्रह किया । अतः शोध विद्यार्थी और विद्वानोंके लिए वह एक साहित्य तीर्थ -सा बन गया है ।
४०४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org