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श्री अगरचन्दजी नाहटाका संग्रहालय देखनेका आज सौभाग्य हुआ। इनका संग्रह भारतवर्ष में अपने ढंगका अनूठा है। और संग्रहकर्ता स्वयं विद्वान् हैं, यह सबसे बड़ी बात है। इस तरहके संग्रहकर्ता और संग्रह जितने भी अधिक हों अच्छा है।
गोपीकृष्ण कानोडिया विवेकानन्द रोड,
कलकत्ता-६ ३१-१-१९५४
I delighted to sei the collection of Mr. Agarchand Nahata.
Vyanehet Keeper Indian Sechar Vehet Museum London
31-11-1954
जिसकी चर्चा वर्षोंसे कानोंमें पड़ रही थी उस पुरातत्त्व सम्बन्धी संग्रहको आज देखनेका सौभाग्य मिला । ग्रन्थ-संग्रह तो बड़ा है ही, उसके साथ पुरातन वस्तु-संग्रह और चित्र-संग्रह तो अमूल्य है। कुछ वस्तुएँ अत्यन्त दुर्लभ हैं और उनका मूल्यांकन नहीं हो सकता। यह एक चिन्तन, मनन और तल्लीनताका काम है कि जिसमें श्री नाहदाजीने अपना सर्वस्व होम कर दिया है।
विद्वान् और कलाकार व्यक्तियोंके लिए यह अमूल्य निधि है। देशमें ऐसे थोड़े ही व्यक्ति हैं, जिन्होंने सर्वस्वके साथ-साथ अपना शरीर और अपना मन भी इसीमें ढाल दिया है। आनेवालोंके लिए यह उपयोगी सामग्री सदैव काम देती रहेगी।
केशवानन्द ग्रामोत्थान विद्यापीठ, सांगरीया
राजस्थान ११-७-५४
अगर चन्द-संग्रह लखे, मिल्यो अमन्द-अनन्दः, बढ़ता रहे, हरि चतुरचित्ति, गगन मांहिं ज्यों चन्द ।
दुलारेलाल भार्गव, प्रधान सम्पादक, संस्थापक माधुरी, सुधा
और गंगा पुस्तकमाला आदि
एक अनधिकारी जिज्ञासुके नाते मैं यहाँ आया था, पर यह विश्वास लेकर जा रहा हूँ कि मैंने यहाँ कुछ सीखा । सचमुच यह सरस्वतीका मन्दिर है और श्री अगरचन्दजी उसके सिद्ध पुरोहित । हमारे देशको ऐसे विद्यागत-प्राण सत्यशोधकोंकी आवश्यकता है।
मन्मथनाथ गुप्त
११-१-५८
३९६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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