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________________ संयोगसे बीकानेर आनेका अवसर प्राप्त हुआ । श्री अगरचन्दजी नाहटा और श्री भंवरलालजी नाहटाका वहसंग्रह देखनेकी इच्छा बहुत दिनोंसे मनमें थी जो अब पूरी हुई। यह संग्रह तो एक ऐसा साहित्य-समद्र है कि इसमें अवगाहनके लिए काफी समय चाहिए। श्री नाहटाजीने साहित्यिक जगतकी जो सामग्री एकत्र की है, उसके लिए कई पीढ़ियां उनका गुणगान करेंगी। इस अद्भुत संग्रहमें इतने रत्न भरे पड़े हैं कि युगों तक उनका मूल्य बढ़ता ही जायेगा और जितना ही इनका परिशीलन किया जायेगा, जगतको उतना ही रस मिलेगा। भगवान नाहटाजीको इतना सामर्थ्य दें कि वे इसे उत्तरोत्तर बढ़ाते जायें। उदयशङ्कर शास्त्री उप० संग्रहाध्यक्ष भारत कला भवन, हिन्दू विश्वविद्यालय काशी-५ This has been a most interesting collection. It is truly a great credit that one man have organised so fine a collection of books, manuscripts and objects of art. I have been particularly interested to see the collection of Rajasthani Painting works. W. S. Kula Scholar of Oriental Shindia London University London. ____ 11-10-1952 भाई श्री नाहटाजीके इस अनूठे पुस्तकालय और कला-संग्रहका दर्शन करके अतीव आनंदकी प्राप्ति हई। दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थों, चित्रों तथा अन्य सामग्रीकी खोज और संग्रह जिस लगन, अध्यवसाय और तत्परतासे श्री नाहटाजीने किया है वह अत्यन्त ही सराहनीय है। राजस्थान एक तरहसे स्वयं ही उत्तर भारतके साहित्य, कला और संस्कृतिका संग्रहालय है। यहाँको भूमि, जलवायु, ऐतिहासिक परिस्थितियाँ और सामाजिक संगठन सभी इस संग्रहमें सहायक हुई हैं, लेकिन आजकल वह सारी सामग्री जिस प्रकार नष्ट-भ्रष्ट होती जा रही है वह प्रत्येक राजस्थानी तथा संस्कृतिप्रिय भारतीयके लिए चिन्ताका विषय है। इन परिस्थितियोंमें श्री अगर चन्दजी नाहटाका प्रयत्न और भी अधिक अभिनन्दनीय है। यह संग्रह अधिकाधिक संवद्धित हो और इसका प्रकाशन भारतीय कला और संस्कृति, इतिहास और पुरातत्त्वको अधिकाधिक प्रकाश में लायें तथा अध्ययनशील युवकोंको अपनी धरोहरकी रक्षा करने और उससे प्रेरणा पानेकी स्फुत्ति दें, यही मेरी कामना है। जवाहरलाल जैन, जयपुर १९-११-५२ नाहटाजीका संग्रहालय अतीतके पृष्ठोंका उद्घाटन करता है। नाहटाजीके दर्शन पाकर मैं स्वयंको भाग्यशाली मानता है कि मेरे युग में ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने समाज को उसको धरोहर सौंपी है। प्रवीणचन्द्र जैन २-१-१९५३ आगन्तुक सम्मतियाँ : ३९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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