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________________ प्रतियाँ हैं। कन्नड़ और बंगला-भाषाके नागरीलिपि में लिखे गये ग्रन्थोंकी भी कुछ प्रतियां हैं। अतः अब केवल संख्याकी दृष्टिसे ही नहीं, विविधता और महत्त्वको ध्यानमें रखते हुए भी बहुत बड़ी सामग्री संग्रहीत की गयी है। आज भी यही दृष्टि व प्रयत्न है कि जिन विषयों, भाषाओं और लिपियोंके ग्रन्थ हमारे ग्रंथालय में नहीं हों, उनको अधिक मूल्य देकर भी संग्रहीत किया जाय । इस तरह गत २५ वर्षों में इस ग्रंथालयका एवं संग्राहलयका जो उत्तरोत्तर विकास होता गया उसकी यह संक्षिप्त जानकारी पाठकों के सम्मुख रखी गयी है । आशा है, इससे प्रेरणा प्राप्तकर अधिकाधिक लाभ उठाया जायगा। अभय जैन ग्रन्थालय एवं कलाभवनके दर्शकोंकी कतिपय आगन्तुक-सम्मतियाँ बीकानेरकी यात्राका एक बड़ा आकर्षण श्री अगरचन्दजी नाहटाके प्राचीन ग्रन्थोंके संग्रह और कलात्मक वस्तुओंके संग्रहको देखना था। वह अभिलाषा यहाँ आकर पूरी हुई। श्री नाहटाजीने जिस लगनसे इस संग्रहको बनाया है वह प्रशंसनीय है। संग्रहमें लगभग १५ सहस्र हस्तलिखित ग्रन्थ है जिनमें हिन्दी भाषा और साहित्यके आठ सौ वर्षोंकी अनमोल सामग्री भरी हुई है। नाहटाजीने अकेले एक संस्था का काम पूरा किया है। आगे आनेवाली पीढ़ियाँ इसके लिए उनकी आभारी रहेगी। जिस तत्परतासे उन्होंने संग्रहका कार्य किया है उससे भी अधिक उत्साह और परिश्रमसे आप इस सामग्रीके आधारपर लेखन और प्रकाशनका काम कर रहे हैं । अबतक वे लगभग पाँच सौ लेख लिख चुके हैं जो अधिकांश उनके अपने संग्रहकी साहित्यिक सामग्रीपर आधारित है । एक सहस्र वर्षों तक जैनोंने हिन्दी भाषाके भण्डारको विविध कृतियोंसे सम्पन्न बनाया। वह ग्रन्थराशि गुजरात, राजस्थान, संयुक्त प्रान्तके जैन सरस्वती भण्डारोंमें सौभाग्यसे सुरक्षित है। नाहटाजीका ग्रन्थ-संग्रह इसी प्रकारका एक सरस्वती भण्डार है। शीघ्र ही हिन्दीकी शोध-संस्थाओंको इस सामग्रीके व्यवस्थित प्रकाशनका उत्तरदायित्व सँभालना चाहिए। आशा है नाहटाजीके जीवनकालमें ही यह कार्य बहुत कुछ आगे बढ़ेगा। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप अभीतक अपने संग्रहको बढ़ा रहे हैं और भविष्यमें एक पृथक् भवनमें उसको स्थापित करना चाहते हैं। इस कार्यमें उनके विद्या-प्रेमी भतीजे श्री भंवरलाल नाहटा भी उनके सहयोगी हैं जिन्होंने उन अधिकांश सामग्री एकत्र करने में सहायता दी है। नाहटाजी जिस मुक्त हृदयसे अपनी प्रिय सामग्रीको विद्वानोंके लिए सुलभ कर देते हैं इसका व्यक्तिगत अनुभवकरके मेरा हृदय गद्गद् हो गया। निस्संदेह नाहटा संग्रह हिन्दी साहित्यकी एक अमूल्य निधि है । ईश्वर उसका संवर्धन करें। वासुदेवशरण अग्रवाल सुपरिण्टेिण्डेण्ट पुरातत्त्व विभाग नयी दिल्ली ३०-३-४८ Was Pleased to see the wonderful and valuable collection of Nahata Family at Bikaner, P. L. Vaidya Professor of Sanskrit Wadia College, Poona 3-3-47 व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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