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________________ मैं अपनी सहज एवं सात्विक श्रद्धा-भक्तिके साथ आपके जीवन व कृतित्वकी अवतारणाके विषयमें बिना किसी अतिशयोक्तिके साथ यह निःसंकोच कह सकती हूँ कि वीतराग भगवान महावीरने अपनी परम पुनीत श्रमणीय संस्कृतिकी पवित्र परम्पराको युगानुरूप स्वरूप प्रदान करने तथा उसका प्रचार-प्रसार व संवर्द्धन करने हेतु ही इस प्रज्ञा-प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्वका इस धराधामपर सम्प्रेषण किया है, अन्यथा यह कैसे संभव है कि गहस्थ-जीवनके सम्पूर्ण उत्तरदायित्वोंका सम्यक् प्रकारसे निर्वहन करते हुए उससे भी द्विगुणित उत्साह एवं प्रबल शक्तिमत्ताके साथ सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं आध्यात्मिक प्रवृत्तियोंके विकासार्थ केवल सामान्य योगदान ही नहीं अपितु उनमें अपना पूर्ण सक्रिय सहयोग, प्रेरणा व उद्दात्त दिशाबोधन भी आप करते रहें। आपके द्वारा संस्थापित एवं संचालित श्री अभय जैन पुस्तकालयमें अन्य अमूल्य बृहद् पुस्तकोंके साथ अलभ्य प्राचीन आगम ग्रन्थोंकी पाण्डुलिपियोंका भी विपुल संग्रह है, जिसके कारण यह ग्रन्थागार शोधअध्येताओंके लिए सदा ही आकर्षणका केन्द्र बना रहता है। इतना बृहद् संकलन कोई एकाएक नहीं कर सकता । इसके लिए विपुल द्रव्य-राशि, लम्बा समय तथा बड़ी ही सूझ-बूझ की अपेक्षा है। किन्तु हम देखते हैं कि मान्य श्री नाहटाजीका अपनी बाल्यकालीन कल्पनाका स्वरूप आज इस साकार स्थिति में है । एक ही व्यक्ति द्वारा स्थापित व संचालित यह ग्रन्थागार अपने देश में अपने प्रकारका एक ही है, जिसमें इतनी अधिक पाण्डुलिपियाँ इतने सुनियोजित ढंगसे एक साथ उपलब्ध हो सकें। आप अब भी इसके संवर्धन एवं सुनियोजनके लिए पूर्ण प्रयत्नवान है। इससे लाभ उठाने वाले देश-विदेशके शोधार्थी छात्र पूज्य नाहटाजीके प्रति कितनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते होंगे, इसका अनुमान लगाना भी हमारे लिए अत्यंत आह्लादकारी है । प्रातः शय्यात्यागसे लेकर रात्रिमें शयन-विश्रामपर्यन्त आपकी अपनी एक विशिष्ट दिनचर्या है, जिसकी परिपालना आप पूर्ण सतर्कता एवं उत्साह तथा सावधानीके साथ करते हैं। जिन कार्यों व रचनाओंका सम्पादन कार्य आपने एक बार प्रारंभ कर दिया, उन्हें अनवरत श्रम करके पूर्ण सम्पादित करके ही विश्राम लेते हैं। किसी भी योजनाकी क्रियान्वितिको अर्धसम्पन्नावस्थामें छोड़ना आपका स्वभाव नहीं। नियम-पालनकी कठोरताके आप बड़े पक्षधर हैं। नियमानुसार दिनचर्याकी पूर्ति आपका सहज स्वभाव है। इसीका परिणाम है कि जितना कार्य कई संस्थाएं मिलकर सम्पन्न नहीं कर सकतीं, उनसे कहीं अधिक कार्य आपने एकाकी रूपसे सम्पन्न किया है । आप धुनके धनी व लगनके पक्के हैं। आपकी रचनाओंके विषयोंकी विविधता भी बड़ी व्यापक है। नैतिक व आध्यात्मिक जीवनसे सम्बन्धित शायद ही कोई ऐसा विषय हो, जिसपर आपकी लेखनी नहीं चली हो। एक साथ अनेक विषयोंसे सम्बन्धित रचना-प्रक्रिया सदा चलती रहती है। इन सबको देखकर ऐसा लगता है कि आपका मस्तिष्क विश्वकोष ही है। प्राचीन पाण्डुलिपियोंमें छिपे हुए तत्त्व सर्वसाधारण एवं विद्वज्जन दोनोंके लिए समानोपयोगी रूपमें प्रस्तुत करनेकी क्षमता आपकी लेखनीकी अपनी मौलिकता है। अद्भत रचनाभिव्यक्तिके साथ आपकी वक्तृत्व-शक्तिकी क्षमता भी अनुपम है। घंटों तक किसी भी विषयपर बिना थके हुए निरन्तर नवीन विचारों व उद्भावनाओंको गंभीर प्रवाहमें प्रस्तुत करना, आपकी वाणीका कौशल है। मुझे अनेक बार आपकी ऐसी अमृत-वाणीको श्रवण करनेका सौभाग्य मिला है। अपने भाषणमें जब आप जैनागम निगमोंके साथ अन्यान्य दार्शनिक सम्प्रदायोंके उद्धरण प्रस्तुत करते हैं तो आपके गंभीर ज्ञानकी गहराईपर. आश्चर्य होता है। विषय प्रतिपादनमें आप उन्हीं शास्त्रीय वचनोंका सहारा लेकर भगवानकी वाणीके सार्वभौम स्वरूपकी जब प्रस्तुति करते हैं तो आपकी विलक्षण समायोजन क्षमताके दर्शन होते हैं। ऐसा केवल तत्त्वदर्शीके लिए ही संभव है. सामान्य विद्वत्तासे यह संभव नहीं। व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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