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________________ अभिनन्दन करता हूँ और आपके शतायु होनेकी कामना करता हूँ। प्रभु आपको और अधिक बल दे, जिससे शेष आयु में भी आप साधनामें लगकर विभिन्न ग्रन्थ - रत्नोंकी खोज तथा सम्पादन कर माँ सरस्वतीका श्रृंगार कर सकें । भारतीयविद्याविदों (Indologists) में श्रीअगरचन्द नाहटाका स्थान डा० आनन्दमङ्गल बाजपेयी भारतीयविद्या ( Indology ) ने विदेशों में प्रभूत ख्याति अर्जित की है । जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों के विद्वानोंने बहुत श्रमपूर्वक भारतीयविद्याका अध्ययन किया और प्राप्त सामग्री के आधार पर विविध ग्रंथ लिखे । उन पाश्चात्य विद्वानोंके कार्यसे ही यहाँके विद्वानोंका ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ । आज संसार में शेक्सपियर और कालिदासकी काव्यगत तुलना की जाने लगी है । गान्धार कलामें एशियाकी सांस्कृतिक चेतनाका मूल्यांकन होने लगा है । वैदिक भाषा और हिब्रूमें मूल भारोपीय भाषाका विकास लक्षित किया जाने लगा है । एशियाके सुन्दर देशोंके मठ-मन्दिरोंकी रचना-पद्धति में बौद्ध प्रतीक खोजे जाने लगे हैं। और जैनदर्शनके विज्ञानवादका आजके यूरोपीय विज्ञानके परिप्रेक्ष्य में अध्ययन होने लगा । यह सब भार - तीय विद्या अध्ययन विवेचनका परिणाम है । किन्तु, इसका श्रेय पाश्चात्य विद्वानोंको ही नहीं है । भारतीय विद्वानों और मनीषियोंके सतत अध्यवसायका फल इसे मानना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द, डॉ० राधाकृष्णन, डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल, डॉ० पी० वी० कणे, डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल, प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी, श्रीअगरचन्द नाहटा प्रभृति विद्वान् तत्व वेत्ताओंने भारतीय विद्याके विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है । इसी सन्दर्भ में श्रीअगरचंद नाहटाके कार्यंका किंचित् निभालन प्रस्तुत करना यहाँ अभीप्सित है । पाश्चात्य विद्वानोंने भारतीय विद्याके क्षेत्रमें जो कार्य किया है, उसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व है । अंग्रेज यहाँ शासक बनकर आये थे । यहाँके धन-वैभव पर उन्होंने अपना अस्तित्व जमाया । साथ ही, यहाँ के भाषा, जाति, धर्म, सांस्कृतिक चेतना, कला और साहित्यको अत्यन्त हीन एवं निकृष्ट सिद्ध करने हेतु इस सबका ज्ञान प्राप्त किया। उनकी मूल भावना यह थी कि पराजित भारतीय जातिमें प्रगतिशीलता नहीं है, इसी कारण वह शताब्दियोंसे परास्त एवं परतन्त्र बनी रही । वे विद्वान साधन-सम्पन्न थे और उनमें अपने देश तथा अपनी यूरोपीय संस्कृति को संसारके सम्मुख गौरवपूर्ण सिद्ध करनेकी सच्ची लगन थी । संस्कृतप्राकृत आदि भाषाएँ न जानते हुए भी वे भारतीय पण्डितोंकी सहायतासे प्राचीन शिलालेख, ताम्रपत्र आदि पढ़कर अपना नाम रोशन करना भलीभाँति जानते थे । उन्होंने अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारतीयविद्या कुछ सही, कुछ गलत रूपमें संसारके सामने प्रकाशित की। शासकीय भाषा के माध्यमसे जो भी प्रकाशित होता था, उसकी प्रामाणिकता उन दिनों स्वतः सिद्ध थी । परिणामतः हमने उनकी बात पर विश्वास करके आत्मविश्वास खो दिया । अपने धर्मको रूढ़िग्रस्त समझा, अपनी भाषाको ( संस्कृतको ) Dead Language मृतभाषा मान लिया, वैदिक ऋषियों को पशुचारणयुग ( Pastoral Age ) का चरवाहा समझ लिया और अपनी कलाकृतियाँ लंदन म्यूजियम में रखवा दीं। कुछ विद्वानों जैसे मैक्समूलर, पिशेल प्रभृतिने अंग्रेज ३४४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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