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उण दिन स, म्हां दोनुवां मेल-मिळाप, तर-तर-तर-तर बधतोई गयो । अर पछ. म्हारी सर समरथ मां राजस्थानी री उपेक्षा अर उणमै प्रांत री मातृभाषा रै सिघासण ऊपर बिराजमान करावण रै प्रण्म कार्य रै निमित खरै प्रयह नाम जुट जावणरै सवाल नै लेय र म्हां दोनोंमें खरो बंधुत्व बणग्यो ।
श्री नाहटाजी रीईज, प्रेरणा सू', म्हां लोगां, राजस्थानी साहित्य परिषद् री स्थापना कीवी-सायत सन् १९३० रै आसरै। जिणरी साहित्यिक साप्ताहिक गोष्ठियां, नेमसूं, श्री गुणप्रकाशक सज्जनालय भवन हया करतीं । प्रत्येक साहित्यकार, पणले राखियो हो के गोष्टीमें नवीं रचना सुणावै । इण सं मोकळा नवा लेखक परकासमें आया अर मोकळोई मातृभासा रो पस्वार हयो ।
सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट री स्थापनामें आपरी प्रेरणा अर अरपिरचयतन वैरो रैयो । आप इन्स्टीट्यूटरा बरसां तांई, निरदेशक रैया। अर आपरी लगन सूईज, इन्स्टीट्यूट सू "राजस्थान भारती" नांवरी पिरसिद्ध शोध पत्रिका रो पिरकासन सरू हयो। अर हयो तीस-पंतीस अमोली पोथ्यां रो पिरकासन।
आप, अभै जैन ग्रंथाले री थरपना कीवी, जिणमें ५०-६० हजार जैन व जैनेतर हस्तलिखित ग्रंथ रहना रो संगै है। भारत रै छावा लेखकां, कवियांरी पोथ्यां, ग्रंथाळमें भरी पड़ी है। अर भारत व विदेसरा सोधराव सादा पत्र बराबर आंवता रै वै है। इणरै पाखती सैनडों कळा कृतियां कळा-कक्षरी सोभा कधाय रैया है।
___ आपरै ग्रंथालेमें, शोधन, कर्तावांन जोयीजती सामगरी, सोरी-सोरी-सोरी मिळ्सकै है नै बढ़ ई बैठार आपरो काम-काज करणेरा सुभीतो ठूक सके है ।
राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर रै आप संस्थापक सदस्य है । दशाब्दी सम्मेलन माथै, अकादमी, आपनै 'राजस्थान रै वरिष्ट साहित्यकार' र रूपमें सुवरण पदक सूं अलंकृत किया हा।
राजस्थानी भासा ने साहित्यिक मान्यता मिळ्णे रे मोटे हरखमें, सोनगिरी कूबरै खनै होवणिय विसाल समारोहमें, आपरी वरसरी अगली आयुरी प्राप्ति री खुसीमें आपरो नागरिक सनमान हुयो हो।
श्री नाहटाजी, शोध संबंधी अर बीजा उपयोगी विसयां पर तीन हजार वैसी लेख लिखिया है, जिकै, भारत र लग-रग सगलैई नवजादीक पत्रोंमें धिरकासित हय चुका है। अर हालतांई लिखताई जाय रैया है-लिखताई जाय रैया है । दिन अर रात । साधना रतयोगी अर संतरी तरै। थकण रो नांवई को लेवनी ।
आप मोकळी पोथ्यां निरमायी है अर मोकळयां रो संपादन करियो है, जिकरी साहित्य जगतमें मोकली सरावणा हुई है।
अवार इणी जुलाई मास सन् १९७१ री ११ वीं तारीखनै, राजस्थानी भासा पिरचार सभारी परिख्या समिति, आपरै दीक्षान्त समारोह [कोकाणी व्यासां रो चौक, बीकानेर में आपनै मानद [ऑनरैरी] उपाधी "राजस्थान साहित्य वाचस्पति" सूं अलंकृत किया हा ।
ग्रंथाले ने, भरो-पूरो राखण सारू, आप साहित्यिक सामगरी नै कळा-कृतियां री प्राप्तिमें, खुलं हाथां खरच कर है। पण, इयां, बीजी बातांमें पाई-पाई रो है साव करणमें आप "पक्का बाणिया" है।
३२० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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