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________________ साहित्यमूर्त्ति श्री अगरचन्दजी नाहटा श्री उदयवीर शर्मा एम० ए०, बी० एड० पड्यां सूं बतळावती ऊँची धोती, चोड़ो लिलाड़, काळा धोळा केस, कटारी सी तीखी सोवणी रोबीली मूंछया, मझलो कद, तगड़ो सरीर; पकती ऊमरमें भी सरावणा जोग फुरती, हांसतो मोवणो मुखड़ो, जोध जवानां नै मात करणियो उत्साह, प्यारा बैण अर मोटा नैण हाळा, धुन रा धणी, आप री मिहनत मीत्रत सू कीरत कमावणियां उद्भट साहित्यकार श्री अगरचन्दजी नाहटा राजस्थानी साहित्य रा जीवन-धन है । आप जूनै अर नूवै साहित्य रा सूचना केन्द्र है। नूंई सूं नूंई जाणकारी भी आप सूं छानी कोरै सकेन । आप समं रो मोल जाणणिया अर करणियां है । एक छिन भी अकारथ कोनी खोवै । के तो साहित्य साधना के नूवा साहित्यकारां अर साहित्य रं निरमाणमें, अर के भजन - भावमें लाग्या रैणिया है श्री नाहटा जी । कायारा धणी श्री नाहटाजी दिनूगं तड़काऊ चार बजे सूं लगेर रात पड़े १०-११ तक काम करता ई वै । घणखरो बखत सुरसत सेवा में ही लगावे, जणां ही सुरसत इनां पर राजी होयरी है । श्री नाहटाजी रो जीवन सदा ही इकरंगो रह्यो है । आज जिया पढ़ाई-लिखाई में झूझता है बिया ही आप बचपनमें हा। बचपन सूं ही गैरो ग्यान ग्रहण करणे री रुचि राखणिया रैया है । शोध अर जूनी जानकारी लेवणी आपरो उद्देश्य रैयो है । इकलग पढणो अर एकान्त साधना आपरी सुफलता सीढयां है । साहित्य रा सागर है नाहटा जी। आज भी देस री २००-२५० पत्र-पत्रिकावांमें आपरा लेख एकर साथ छपतां वै । अब तक आप कई हजार लेख छपवां चुक्या है | आप पुस्तकालय में आंख्यां देखे जणां अणछप्योड़ा, हस्तलिखित पत्र-पत्रिकावां से श्री नाहटा जी । चाहे जणां जाय र बतल्याल्यो पोथी त्यार है । बेरो पड़े के यो विद्वान किसोक है। छोटा-मोटा, छप्योड़ा मिलार कोई लगवां पोथियां अर सगला री सांची सूची है। श्री नाहटाजी दया, सील अर स्नेह रा खजाना है । छोटे साहित्यकार सूं लेयर बड़े तक सुबे खुलकर बात करें । कोई भेदभाव नीं । सत्य लाए नैं आप रे ग्यान से परसाद देवें । हिन्दी साहित्य र इतिहास नै नुवो मोड़ देवण तांई भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी एक साहित्यकार मंडल बणायो हो । इण भाँति ही आप भी एक साहित्यकार मंडल बणा राख्यो है । आप री प्रेरणा सूं घण साहित्यकार त्यार होया है, नाम कमावणियां लूठा साहित्यकार बण्या है । राजस्थानी अर जैन साहित्य में पी-एच० डी० लेवणियां ने आप खने आया सरें । आप कागदी नाहटाजी लोगां ने डाक्टर डिगरी हाळा विद्वान कोनी पण ग्यान रा सागर है । डाक्टर री डिगरी बिना श्री थावे | आप जिसा मनीसी तपसी अर लगनी विद्वान मिलणा दोहरा भोत ! ऊँची ऊँची सम्मान - पदवी दी जा सके है । आप बींरा खरा पात्र है । आपनै भारत सरकार री आप सैकड़ी बरसां तक सुरसत माता री सेवा में ळण्या रेवै अर पर जीवण रो एक दिन हजार बरसां र बरोबर हो, या हो भगवान सू अरदास हैं । Jain Education International व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३१७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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