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________________ रेखा हो। सैकड़ों अनुसंधाता उनकी कृपादृष्टिसे कृतकार्य हो सकते हैं। वे अनुसंधायकों के लिए अजस्र प्रेरणास्रोत हैं। एक बार भी यदि कोई किसी तरह उनके सम्पर्क में आ गया, तो समझो कि उनके कृपामतसे सराबोर हो गया। 'मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी ॥' इस उक्तिको चरितार्थ करनेवाला मुझ जैसा व्यक्ति भी इस महान् साहित्यिक संतके स्नेहामृतका भाजन बन गया, इसे मैं अपना सौभाग्य समस्या उस संतकी प्रकृत उदारता और कृपा ? वस्तुतः, वन्दनीय है वह साहित्यिक संत और अभिनंदनीय है उसका महान् साहित्यकार तथा साहित्य कोश, जिसके कृपाभावने मुझे भी सौभाग्यशाली बना दिया। प्रभुसे प्रार्थना है कि समादरणीय श्री नाहटाजी के साहित्यिक कल्पवृक्षको सुखद एवं स्निग्ध छाया शताधिक वर्षों तक शोधार्थियों एवं साहित्यकारों को आश्रय प्रदान करती रहे और युग-युग तक साहित्यसाधकोंको शक्ति प्रदान कर राष्ट्रभाषा की अभिवृद्धि करती रहे। आज सोचता हूँ कि कितना महान् था वह शुभ क्षण, जब मैंने उन्हें वह पत्र लिखा था शरद्-चन्द्र शत वर्ष हर्षयुत 'अगरचंद' के गाये गान , शत बसंत फलों को भरकर भेंट करें सादर मुस्कान । हिन्दी हुई समृद्ध प्राप्तकर जिनका साहित्यिक अनुदान , उनसे राजस्थान न केवल उपकृत हिन्दी-हिन्दुस्तान ॥ राजस्थानी रा राजदूत श्री रतन साह, कलकत्ता श्री अगरचन्दजी नाहटा राजस्थानी भाषा-प्रेमियों खातिर एक व्यक्ति विसेस नीं रैया है-बै भासाइतिहासका एक अध्याय है। उण रै अभिनन्दन ग्रंथमें लिखता टेम कलम थोडी कांप के उण स अर महान् भासा-ऋषि खातिर मेरे द्वारा प्रयोगमें लाये जाणे हाला सबद उण रै जोग होगा के नई ? भाषा-इतिहास मांय कोई एक मिनख औंयारो नजर नी आवै है के जिणसू अणरी तुलना करी जा सके। नाहटाजी रो व्यक्तित्व सूरज री किरण रो रंग है जीरो सानी मिले नों-प्रिज्म (Prism) नै सांमी रख, र भी किरण नै रंगपट पर साहूँ रंगामें तोड़ा तो एक-एक रंग री जोड़ भला ओं इतिहास रै पानामें नीग आवै। नाहटाजीमें चौदहवीं सदी र इटली-पुनर्जागरण रै विद्वान् पोगियो सिओलिनि ( PoggioBracciolini ) री झलक दीखै, जिको इटली रै पुरातन नै देख'र बोनल्यो, 'इब भारी भरकम लास री तरियां उपेक्षित रूपमें पड़ी है, जघां-जघांसे खज्योड़ी, खायोड़ी, ओ नै झाड़ो-संवारो', राजस्थानी खातिर ए ही सबद नाहटाजी जघां-जघां बोलता कि रैवै है। दूजा लोग सुण'र चेत्या हो या ता हो, खुद नाहटाजी अरबिना रोड्यूक (Duke of urbino ) बणगा जिको के पुरातन काल से लगा'र बी टेम तक रो बृहत्तम लाइब्रेरी री निर्माण ४० बरसां ताधी १४ लिपिकां नै लगा'र करयो । व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २६५ ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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