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________________ सम्बन्ध मस्तिष्कसे है और भक्तिका सम्बन्ध हृदयसे । भक्त के लिए भगवान् ही सर्वस्व है । उनके चरणों में पूर्णरूपसे अर्पित हो जाना ही सच्ची भक्ति है । पर ऐसी शुद्ध और उच्च स्थिति विरल भक्त ही प्राप्त कर सकते हैं" । इस समय उपलब्ध हुए इन्हीं कुछ लेखोंके आधारपर हम कह सकते हैं कि श्रीनाहटाजीके लेख शोधपूर्ण होते हैं । ऐसे महत्त्वपूर्ण लेख जिस लेखकने तीन-चार हजारकी संख्या में लिखे हों वह राष्ट्र-भाषा हिन्दीका कितना बड़ा साधक होना चाहिए। उनके ग्रन्थोंके पढ़नेका सौभाग्य मुझे नहीं मिल सका । उनकी संख्या भी कम नहीं है उनके द्वारा लिखित या सम्पादित ग्रन्थोंकी संख्या संतीस है । इनके अतिरिक्त कुछ ग्रन्थ अप्रकाशित रूप में पड़े हुए हैं । इतना अधिक कार्य उनकी महती साधनाका परिणाम है । बन्धुवर नाहटाजी लेखक ही नहीं एक सहृदय मानव हैं। अपने गुरुजनों, विद्वानों, कलाकारों एवं महापुरुषोंके प्रति आपका हृदय श्रद्धासे ओत-प्रोत रहता है । स्व० पिताजीकी स्मृतिमें उनके द्वारा संस्थापित " शंकरदान नाहटा - कलाभवन" एवं स्व० भ्राता श्री अभयराजजी नाहटाकी स्मृतिमें "श्री अभय जैन पुस्तकालय " (बीकानेर) नामक संस्थाएँ इस बातका प्रबल प्रमाण हैं । आपके भतीजे श्री भँवरलालजी नाहटाकी उत्कृष्ट साहित्य साधनाएँ अपने पितृव्य चरणकी साहित्य साधनाओंमें इसी प्रकार विलीन सी रहती है जैसे राष्ट्रकवि स्व० मैथिलीशरणजी गुप्तकी साहित्य - साधनाओं में स्व० श्री सियाराम शरण गुप्त की । फिर भी आज जिस प्रकार अपनी अमर कृतियों द्वारा वे गुप्त-बन्धु अमर हैं, उसी प्रकार हमारे नाहटा-बन्धु भी सदैव अपनी अमर कृतियोंके द्वारा अमर रहेंगे । नाहटाजी के अभय जैन ग्रंथालय में लगभग चालीस सहस्र प्रकाशित ग्रन्थ हैं और इतने ही हैं अप्रका शित। आपकी महती संग्रह-शीलताका यह एक प्रत्यक्ष प्रमाण है । संक्षेपमें वे सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी हैं । आपने समीक्षक, ग्रन्थ लेखक, सम्पादक, संग्राहक एवं निदेशक आदि विविध रूपोंमें हिन्दी के साहित्यको समृद्ध बनाकर राष्ट्र-भाषा का गौरव बढ़ाया। इसी प्रकार कई सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थाओंके जन्मदाता अध्यक्ष एवं सदस्य के रूपमें उन्होंने राष्ट्रके नैतिक उत्थान में सहयोग प्रदान किया। श्री नाहटाजीसे पथ प्रदर्शन पाकर अनेक शोध-कर्त्ताओंने अपने-अपने शोध कार्यों में सफलता प्राप्त की । ऐसे महान् साधकके प्रति निम्नरूपमें इस लेखकको कवि अपनी शुभ कामनाएँ अर्पित करता है और परम पितासे प्रार्थना करता है कि श्री नाइटजी शतंजीवी और वे सदैव सानन्द एवं सोत्साह अपने पथपर अग्रसर होते रहें । Jain Education International साहित्य-साधकः श्रीमान् राष्ट्र-भाषा समृद्धिदः । नाहटोऽयमगरचन्द्रो जीवेच्छरदः शतम् ॥ किसकी ? जिसकी । भरे हैं । अरे हैं ! कहिए है साहित्य - साधना इन सी नर्तन करती रहे लेखनी नित ही पत्र-पत्रिकाओं में जिसके लेख जाने कितने ग्रन्थ इन्होंने रचे रहें । अगर सुरभि दे, चन्द्रसमसकल ताप हरते पथ से पग ना हटा अगरचन्द्र बढ़ते नित रहें ।। व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २३९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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