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________________ सौजन्य मूर्ति नाहटाजी श्री रामेश्वरदयाल दुबे सस्ता साहित्य मंडलकी ओर से जब आचार्य विनोवाभावको उन्हींपर आधारित एक ग्रन्थ उस दिन भेट किया गया, तब उन्होंने कहा था कि इस प्रकारके समारोहोंको मैं इस रूपमें लेता हैं कि किसी सेवककी सेवाओंको जनताने स्वीकार किया है और उनका आदर किया है। यह लोक स्वीकृति उचित भी है और आवश्यक भी। ___ कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या यह आवश्यक न होगा कि जीवनकालमें ही यह अल्प संतोष व्यक्तिको दिया जाय । मृत्युके बाद होने वाले शोक प्रस्तावों और स्मृति-समारोहोंका मूल्य कितना भी हो व्यक्तिके लिए उनका कोई अर्थ नहीं रहता। इसलिए ऐसे समारोहोंको मैं आदरकी दृष्टिसे देखता हूँ | श्रेष्ठिवर श्री अगरचन्दजी नाहटाजी के गहन अध्ययन और प्रकाण्ड विद्वत्ताके संबंधमें बहुतसे लोग प्रकाश डालेंगे । मैं तो यहाँ उनके मानवीय रूपपर एक दो संस्मरण देना चाहता हूँ। जहाँ तक स्मरण है, मेरी उनसे प्रथम भेंट सिलचर में हुई थी। लम्बा, ऊँचा कद, मारवाड़ी पगड़ीमें उनका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली लगा था। किन्तु उनके सरल, सौम्य स्वभावने उस प्रभावको आत्मीयतामें बदल दिया था। सुनता था जो जितना बड़ा होता है उतना ही वह विनम्र होता है । उस दिन श्री नाहटाजी इसका एक उदाहरण सिद्ध हुए थे। इस शोध-पंडितके गवेषणापूर्ण निबंधों को जब-जब पत्रपत्रिकाओं में पढ़ता हूँ, तब सोचने लगता हूँ कि यह कैसा आदमी है कि जिसे पुरानी पोथियोंमें डूबनेमें इतना आनन्द आता है । सिलचरकी वह शाम भूल नहीं सकता। जब मैं उनकी स्नेह वर्षा में खूब भीगा था। अभी कुछ वर्ष पहले श्री नाहटाजी भारत जैन महामंडलके किसी समारोहमें सम्मिलित होनेके लिए वर्धा पधारे थे। तब राष्ट्रभाषा प्रचार समितिके प्रांगण में भी पधारनेकी कृपा की थी। कार्यकर्ताओंकी एक सभा बुलाकर हमें उनका सम्मान करनेका सौभाग्य प्राप्त हआ था। समितिके कार्य कल्याणको देखकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई थी और उन्होंने अपना सन्तोष व्यक्त किया था। आजका साहित्यकार डिगरियोंके आधारपर विद्वान् माना जाता है। किन्तु श्री नाहटाजी इसके प्रत्यक्ष अपवाद हैं। उनके मार्ग-दर्शनसे लाभ उठाकर न जाने कितने छात्र डाक्टर (पी-एच. डी ०) बन गए। श्री नाहटाजी को कुछ बननेकी फुरसत ही नहीं मिली। वे तो बनाने में ही सुख पाते रहे। . ऐसे श्रेष्ठिवर नाहटाजी के प्रति मैं अपनी विनम्र श्रद्धा व्यक्त करता हूँ। २३२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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