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सकना कठिन समस्या है। इन पंक्तियोंसे हमें नाहटाजीके साहित्य क्षेत्रमें किये जानेवाले प्रयासोंका संक्षेपमें दिग्दर्शन मात्र है, विशेष अनुमानसे ज्ञातव्य है।
कामना
नाहटाजीके अभिनंदनका संकल्प करनेवाले सज्जन अत्यन्त धन्यवादके मात्र है। क्योंकि उन्होंने एक अतीव औचित्यपूर्ण आवश्यक कार्यकी ओर समुचित व्यान दिया है। साहित्य क्षेत्रका कार्य एक कठिन साधना है। सर्वसाधारण उस प्रयासकी जानकारीसे अपरिचित रहते है। साहित्य-प्रेमीही साहित्य सेवी का सकाम मूल्यांकन कर सकता है। आजका युग भौतिक अर्थ प्रधानताका युग है । इसमें ज्ञानका महत्त्व उस रूपमें मान्य नहीं है। जिस रूपमें वह होना चाहिए।
“सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति" मनुष्यके सब गुण विद्या तथा शालीनता अर्थके आयाम है। गुण-विद्या शालीनताकी वजाय अर्थके महत्त्वको सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। विद्वानोंकी-साहित्यसेवियोंकी-श्रेष्ठ व सज्जनपुरुषोंकी समाजमें जैसी मान्यता होनी चाहिए वह नहीं है। अतः ऐसे कालमें जो सज्जन इस ओर ध्यानमें हैं तथा प्रयास करते हैं वे वस्तुतः एक ऐसे आवश्यक कार्यकी पूर्ति करते हैं जिससे हमारे इतिहास हमारी सभ्यताका पूरा-पूरा संबंध जुड़ा हुआ है। जो समाज अपने विद्वानों, साहित्यसेवियोंका समादर करता है, उनके महत्त्वको स्वीकार करता है। वह समाज अपने अस्तित्व व महत्ताकी पूर्ति करता है। राजस्थानमें आज भी ऐसे अनेक मौन साहित्य साधक हैं जिनका हमें ठीकसे परिचय नहीं है। उनको भी प्रकाशमें लानेकी आवश्यकता है। हमारे समाज की साहित्यिक संपत्तिके ये ही सच्चे प्रहरी हैं जो अनवरत अपने प्रयासोंसे उस दुर्लभ महान् सम्पत्तिका संरक्षण व विवर्धन करते हैं। हमारी उनके लिए यही कामना है कि वे दीर्घकालतक अपनी महती सेवा द्वारा साहित्यिक सम्पतिका विवर्धन व संरक्षण करते रहें। नाहटाजी भी उन्हीं साहित्यिक साधकोंमें हैं अतः वे स्वस्थ व दीर्घजीवी होकर अपने लक्ष्य में तत्पर होकर प्राचीन साहित्यके अन्वेषण-संरक्षण, विवर्धनमें अपना चिर सहयोग प्रदान करते रहें।
अभिनंदनीय श्री नाहटाजी
। श्री सिद्धराज ढड्ढा श्री अगरचंदजी नाहटाका अभिनन्दन किया जा रहा है, यह जानकर प्रसन्नता हुई। श्री नाहटाजीसे मेरा परिचय काफी पुराना है। हालांकि कार्यक्षेत्र थोड़ा भिन्न होनेसे अधिक संपर्क में अवश्य नहीं आया। नाहटाजीके प्रति मेरे मनमें शुरूसे ही आदर रहा है, लगन, अध्यवसाय और एकनिष्ठ कार्यसे मनुष्य कितना बड़ा काम सम्पादित कर सकता है, उसका एक ज्वलन्त उदाहरण श्री नाहटाजी हैं। जिस जाति और वर्गमें नाहटाजी जन्में, उसमें सरस्वतीकी उपासनाकी परम्परा कम ही है। यह बात नाहटाजीकी उपलब्धियोंको और भी विशिष्टता प्रदान करती है। वे अनेक वर्षों तक साहित्योपासना करते रहें, इस शुभ कामनाके साथ।
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २१७
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