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अभी नाहटाजी श्रीमानतुंगसूरि सारस्वत समारोहमें बम्बई आये तो पुनः दीर्घकालके पश्चात् साक्षात् मिलनेका अवसर मिला । अनेकों साहित्यिक विषयोंपर उनसे खुलकर वार्तालाप हुआ । वार्तालापके प्रसगम मझे ऐसा अनुभव हुआ कि नाहटाजी वस्तुतः चलते-फिरते पुस्तकालय हैं। ये लक्ष्मी-पुत्र ही नहीं, सरस्वती पुत्र भी हैं । इनका अभिनन्दन किया जा रहा है। उनका अभिनन्दन वस्तुतः उनके बहुविध गुणोंका अभिनन्दन है, ये चिरायु होकर अत्यधिक साहित्यिक व धार्मिक सेवा करें, यही हार्दिक मंगल कामना है।
साहित्यिक सेठ श्री अगरचंद नाहटा
श्री रामनिवास स्वामी 'विवेक विकास' का प्रकाशन जुलाई सन् १९६८में प्रारम्भ किया था। तब यह आवश्यकता अनुभव हई कि राजस्थानके कतिपय साहित्यकारोंसे सम्पर्क किया जाय। राजस्थानी भाषा व इतिहासके सुपरिचित लेखक श्री सवाई सिंह धमोराने जिनका 'विवेक विकास के साथ आरम्भसे ही निकटका संबन्ध रहा है, इस संबन्धमें अगरचन्द नाहटाका भी नाम लिया । यह प्रारम्भिक परिचय है श्री नाहटाका विवेक-विकास परिवार से ।
इसके उपरान्त तो उनसे पत्र-व्यवहार होता ही रहा है। परस्पर विचारों का आदान-प्रदान भी है। विवेक-विकास को इस बातकी प्रसन्नता है कि हमारे यहाँ कतिपय शोध-छात्र अध्ययन हेतु आते रहते हैं। राजस्थानी भाषा और साहित्यके अतिरिक्त इतिहास-संबन्धी अनेकानेक गुत्थियों पर चर्चायें ही होती रहती हैं। हमारे सम्पादक मण्डलके सदस्य संदर्भ में सदा ही नाहटाजीका नाम लिया करते हैं। कतिपय छात्रोंको बीकानेर जाते समय नाहटाजीके पुस्तकालयमें अमुक-अमुक ग्रन्थ देखियेगा, इस प्रकारका परामर्श देते रहते हैं।
श्री नाहटाजी का पुस्तकालय वास्तव में राजस्थानी व राजस्थान की दृष्टिसे अनुपम देन है। जिस प्रकार सेठ लोग धन अजित करते हैं, श्री नाहटाने उसी प्रकार साहित्यिक पाण्डुलिपियाँ एकत्रित कर अपने सेठ नाम को सार्थक किया है। इस दिशामें सेठोंकी सी संचय-वत्ति और और अभ्यास उनका वंशानुगत है। इसीलिए हम उन्हें साहित्यिक सेठ कहते संकोच नहीं करते । समाज-वादके इस युगमें आर्थिक विशेषता को मिटाने हेतु संकल्प लिये हए राजनीतिज्ञ सम्भवतः पंजी बटोरनेवाले सेठों की सम्पति सीमित कर दें परन्तु इस साहित्यिक सेठ की संचित निधि पर उनका यह अस्त्र भी नहीं चलेगा । पूँजीवादी सेठ समाप्त हो सकते हैं परन्तु यह साहित्यकार सेठ तब भी उसी शान से डटा रहेगा जिस प्रकार आज डटा है। नाहटाजी सदैव अमर-सेठ रहेंगे।
ऐसे साहित्यकारका अभिनन्दन होना वास्तवमें एक शुभ संकेत है, जिससे भावी पीढ़ी प्रेरणा लेगी।
'विवेक विकास' परिवार इस अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन प्रस्तुत करता है और शुभकामना करता है कि श्री नाहटाजी साहित्य सेवार्थ दीर्घजीवी हों।
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २१३
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