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________________ इतनी कम मिली हो लेकिन उन्होंने सतत अध्ययन और स्वाध्यायके द्वारा बहुमुखी प्रतिभा प्राप्त की है । उन्होंने प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती और संस्कृत तथा हिन्दीका अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है और पांडित्य भी । लोगोंको यह सुनकर विस्मय होता है कि केवल पाँच दर्जे तक पढ़े नाहटाजी विद्वान अधिकारी लेखक कैसे बनें ? यह सब नाहटाजीकी लगन, स्वाध्याय और मनन- चिन्तनका परिणाम है। नाहटाजीको जन्मजात संस्कारी विद्वान् कहा जाय तो उसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी । आजकल विश्वविद्यालयोंके छात्रों और कॉलेजोंके प्रोफेसरोंमें एम० ए० पास कर लेनेके बाद डाक्टरेटकी पदवी पाने की घुड़दौड़-सी लगी रहती है । वे थीसिस लिखकर डॉक्टर बनना चाहते हैं, और हजारों व्यक्ति डॉक्टर बन भी गये हैं, पर मेडिकल डाक्टरोंके लिए तो शिक्षाकी सुव्यवस्था है। जगह-जगह बड़े-बड़े कॉलेज हैं किन्तु साहित्यके डाक्टरोंके लिये कोई सुविधा नहीं है । विश्वविद्यालयों में भी इस दिशा में अध्ययन के लिये पुस्तकालयों में पुस्तकें सीमित पाई जाती हैं । बड़े राजकीय पुस्तकालयोंसे ग्रन्थ प्राप्तकर अध्ययन करना हरएकके लिए सुलभ एवं संभव नहीं है । फिर भी सैकड़ोंने परिश्रम कर विभिन्न विषयोंपर थीसिस लिखकर "डाक्टरेट" की पदवी प्राप्त की है । हिन्दीमें शोधकार्य करनेके लिए विद्यार्थियोंको विषय मिलना कठिन हो रहा है । इसलिए साहित्यिकोंका ध्यान राजस्थानी भाषा और जैनसाहित्यकी ओर आकर्षित हो रहा है। राजस्थानी भाषा और जैनसाहित्य में विशाल भंडार भरा पड़ा है, जिसकी ओर पिछले १०-१२ वर्षों में साहित्य अन्वेषकोंका ध्यान गया है । नाहाजी राजस्थानी भाषा और जैनसाहित्यके चोटीके विद्वानोंमें माने जाते हैं । उनके पास अपना निजी अनुभव तो है ही परन्तु साथमें एक बड़ा पुस्तकालय भी है, जहाँ चालीस हजार हस्तलिखित ग्रन्थ और इतने ही मुद्रित ग्रंथोंका विशाल संग्रहालय है । भारतके व्यक्तिगत संग्रहालयों में यह सबसे बड़ा है । इसे देखकर डॉ० वासुदेवशरण अग्रवालके मुँहसे निकल गया - "यह साहित्य तीर्थस्थान है" । अभय जैन ग्रन्थालय में सैकड़ों अमूल्य ग्रंथों एवं पुरातत्वकी पुस्तकोंका संग्रह है। वहाँपर भारतके एक छोरसे दूसरे छोर तकके विद्वान् आते हैं या वहाँ से ग्रन्थ मंगाकर लाभ उठाते हैं । नाहटाजी मुक्तहस्त से इस अमूल्य साहित्य निधिको निःस्वार्थ भावसे वितरित करते हैं । पुस्तकालयकी विपुल सामग्रीका जितना उपयोग हो सके, होता है । उतना ही उन्हें संतोष आजकल कई साहित्यिक अन्वेषक ऐसे मिलेंगे जो नाहटाजीसे थीसिस लिखने के लिए विषय पूछते हैं । उनके लिए उपलब्ध साहित्य सामग्री की जानकारी एवं उनका मार्गदर्शन चाहते हैं । नाहटाजी कभी किसीको ना नहीं करते, सभीको यथासंभव सहयोग देते हैं, अपने अनुभवसे साहित्य अन्वेषकके मार्गको प्रशस्त कर देते हैं, अपने पास जो पुस्तकें नहीं होतीं, वे दूसरी जगहसे अपने नाम या कीमत से भी मँगाकर सहायता करते । शोधके कुछ विद्यार्थी इनके पास आकर निवास भी करते हैं, शिष्यभावसे उनके पास बैठकर लाभ उठाते हैं । नाहटाजीकी यह विशेषता है कि अपना सब काम करते हुए भी ऐसे विद्यार्थियोंको उचित मार्ग-दर्शन व सहायता करते हैं । राजस्थानी एवं जनसाहित्य में शोध करनेवाले विद्यार्थी भलीभांति जानते हैं कि इन दोनों विषयोंपर शोधकार्य करना हो और थीसिस लिखना हो तो नाहाजी की सहायता अनिवार्य है । केवल नवीन शोध अन्वेषक ही नहीं, डाक्टरेटकी पदवी प्राप्त विद्वान भी शंकासमाधान के लिए नाहटाजी से मार्ग-दर्शन चाहते हैं । हाल ही की बात है कि अहमदाबादसे "डाक्टरेट" प्राप्त विद्वानका पत्र आया था, जो भारतके एक प्राचीन ग्रन्थ विमलदेवसूरिके "पउमचरिय” पर शोध कर रहे हैं । यह ग्रन्थ प्राकृत भाषाका है और वीर१९० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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