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________________ कई विद्वानोंने उनकी तुलना महापण्डित राहुल सांकृत्यायनसे की है। कई महानुभाव उनकी समता आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीसे करते हैं । पर्वतमें किस शिखर की तुलना किस शिखरसे की जाये ? प्रत्येक शिखरका अपना महत्त्व है। अतः विद्याके सागरमें अवगाहन करनेवाले विद्वानोंकी तुलना करना उचित नहीं है। न मालम कौन व्यक्ति क्या रत्न सरस्वती के मन्दिरमें समर्पित कर दे! साहित्यके जो रत्न श्री अगरचन्दजी नाहटा हिन्दी भाषा और साहित्यको प्रदान किये हैं, उनकी चमक हजारों वर्षों तक धूमिल नहीं होगी। आशा है, अपने भावी जीवन में उनके द्वारा और अधिक रत्न माँ भारतीके मंदिरमें समर्पित होंगे। ____एक विरल व्यक्तित्व प्रोफेसर डॉ. एल. डी. जोशी, एम. ए., पी-एच. डी. मारवाड़ी पगड़ी, बन्दगलेका मारवाड़ी कोट, मोजड़ी और दोनों छोर कसी हुई धोती, घनी मुंछोंवाले प्रभावशाली चेहरे पर चश्मोंसे चमकती हुई आँखोंवाले नाहटाजीको प्रथम बार अखिल भारतीय लोक साहित्य सम्मेलनके बंबई अधिवेशनमें देखा तो मुझे हँसी आयी कि मारवाड़ी काकाको साहित्यका ठीक शौक चर्राया कि साहित्य गोष्ठीका आनंद ले रहे हैं ! परंतु मेरा कथन समाप्त हो उसके पूर्व ही प्रोफेसर के. का. शास्त्रीजीने कहा कि 'जानते नहीं, ये तो श्री अगरचंदजी नाहटा है !' नाहटाजीका नाम मैंने वर्षोंसे सुना था। भला राजस्थान वासी ऐसा कौन साहित्य प्रेमी. होगा जो नाहटाजीके नामसे अपरिचित हो। हिन्दी साहित्यकी तथा हिन्दी की विभिन्न शोध पत्रिकाओं में नाहटाजीके गवेषणा पूर्व लेख पढ़कर मैं प्रभावित हो चुका था। संशोधन तथा मौलिक प्रतिभासे संपन्न नाहटाजीके लेखोंको पढ़कर उनके एक विद्वान व्यक्तित्वकी कल्पना मेरे मनमें घरकर गई थी । राजस्थानकी अनेक महत्त्वपूर्ण परंतु विस्मृत कड़ियोंको नाहटाजीकी तीक्ष्ण दृष्टिने ढूंढ़ निकालने में अपूर्व कार्य किया है। खासकर जैन साहित्यकी अनेकानेक मणिमालाओंको विस्मृतिके गर्भसे बाहर निकालकर हमारी ज्ञान-संपदामें शामिल करनेका अद्वितीय कार्यकर नाहटाजीने प्रदेश तथा साहित्यकी अनन्य सेवा की है। सादुल राजस्थानी रिसर्च-इन्स्टीट्यूट बीकानेरके डायरेक्टर एवं राजस्थान भारतीके संपादकके रूपमें नाहटाजीकी सेवा बेजोड़ है यह कहनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे जितने भी लेख राजस्थान भारती में छपे हैं, उनका श्रेय भी मैं नाहटाजीको ही देता हूँ क्योंकि उनके सतत आग्रह एवं प्रेम पूर्ण प्रेरणासे ही ऐसा संभव हो सका। चाहे कलकत्ता हों या बीकानेर, प्रवासमें हों या घर पर नाहटाजीके नाम लिखे पत्रका प्रत्युत्तर अविलम्ब प्राप्त होगा ही यद्यपि उनकी लिखावट कुछ अजीब ढंगकी है तथापि पढ़ने में परिश्रमके पश्चात् भी भाव समझनेका आनंद कम नहीं होता है। राजस्थान संबंधी प्रकाशनोंके प्रचार की नाहटाजीको सदैव चिन्ता रही है और राजस्थानी साहित्यके प्रचार एवं प्रसारके लिये ये हमेशा ही प्रयत्नशील रहे हैं। राजस्थानके किसी भी भागसे संबंधित संशोधनके प्रति नाहटाजीको सदा ही प्रेम रहा है। इतना ही नहीं नयी शोध समाग्रीको प्रकाशित करानेका इन्होंने अपना भरसक प्रयत्न भी किया है। ऐसी छपी हुई व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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