SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारह तेरह वर्ष बीत गये - जब मैंने अपने 'संत कवि रज्जब' सम्बन्धी शोध प्रबन्धकी सामग्रीगवेषणा हेतु राजस्थानकी चार यात्राएँ लगातार दो वर्ष की अवधि में की थीं। वहाँ चार विद्वान् राजस्थानीहिन्दी-साहित्य में निष्णात सुनाई पड़े- पहले पुरोहित हरिनारायणजी शर्मा, दूसरे स्वामी मंगलदासजी महाराज जयपुर, स्वामी नारायणदासजी पुष्कर तथा श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर। इनमें पुरोहितजी तो दिवंगत हो चुके थे— उनकी कृतियोंसे मुझे शोधका प्रशस्त मार्ग मिला - शेष वृहत्त्रयीसे मुझे प्रत्यक्ष परामर्श, सम्मतियाँ, नाना समस्याओं का समाधान मिला । वन्दनीय नाहटाजी डॉ० व्रजलाल वर्मा, एम० ए०, पी-एच डी० मैं बीकानेर में नाहटोंके गवाड़ जाकर श्री अगरचन्द नाहटा से मिला । उनका पुस्तकालय भी देखा । व्यापार के जटिल क्षीण तन्तुओंपर सरस्वती किस ओज एवं शक्तिके साथ प्रतिष्ठित रह सकती है, यह मुझे वहीं जाकर देखनेको मिला । सन्त कवि रज्जबपर कुछ सूचनाओं तथा रज्जव-बानी के पाठालोचन तथा शब्दार्थ ज्ञान हेतु मैंने एक पत्र डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदीको कभी लिखा था किन्तु उन्होंने स्पष्ट लिखा कि मुझको रज्जबके सम्बन्ध में जितना प्रकाशित है, उससे अधिक ज्ञात नहीं है | सच्चे विद्वान कितनी सहजतासे अपनी — नाजानकारीको स्वीकारते हैं - यह इस प्रसंग में मुझे देखनेको मिला । पं० परशुरामजी चतुर्वेदीका उत्तर भी इसी परम्परा में मिला | श्री स्वामी मंगलदासजी तथा श्री अगरचन्द नाहटासे ही रज्जबजी के सम्बन्ध में कुछ जानकारी प्राप्त हुई— तथा पुष्करके महात्मा स्वामी नारायणदासजीका परिचय भी इन्हीं महाभाग जनोंसे प्राप्त हुआ । नाहटाजीने उदारतापूर्वक अपने पुस्तकालयकी पुस्तकें देखनेका सुअवसर एवं स्वीकृति मुझे दी । नाहटाजी के विद्याव्यसन, विशेष रूपसे राजस्थानकी अज्ञात साहित्यिक सामग्रोकी जानकारीपर मैं विस्मित हुआ । प्रचुर अप्रकाशित सामग्रीका उन्होंने संग्रह किया है । श्री नाहटाके संरक्षणमें राजस्थानसे कई पत्र पत्रिकाओंका त्राण और कल्याण हुआ है । पुरा-साहित्यकी आत्मासे परिचय राजस्थानके जिन मनीषियोंका है, उनमें श्री नाहटाजी शीर्षस्थ लोगों में से एक हैं । नाहाजीका अभिनंदन हो रहा है । मैं आयाजकोंको बधाई देता हुआ पुण्य चरण नाहटाजीको अपना प्रणाम अर्पित करता हूँ । भवन्ति भव्येषु हि पक्षपाताः । 'विद्या ददाति विनयम' डॉ० ब्रह्मानन्द श्री अगरचन्दजी नाहटाका नाम हिन्दीका कौन विद्यार्थी नहीं जानता है ? मैं भी उनका नाम बहुत दिनोंसे सुनता आ रहा था। सहसा, एक दिन कलकत्ताके श्रीरामचन्द्रजीके मन्दिरमें स्थित पुस्तकालय में उनसे भेंट हो गई । यह लगभग १९५८ की बात है । वे कलकत्ता में आये थे और अपने व्यवसायके उद्देश्यसे आसाम जाने वाले थे । श्री नाहटाजी लायब्रेरीमें पुस्तक देखने में तल्लीन थे । वे एकाग्रचित्त हो किसी पुस्तकको बहुत देर तक देखते रहे । उनकी वह मुद्रा मुझे आजतक स्मरण है । I व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १७७ २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy