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विधा देता है तो सृजनकी प्रकृति तीनों ही मनःप्रवृत्तियों की प्रकृति स्वीकार की जानी चाहिये अन्यथा कर्मयोग व ज्ञानयोग दोनों ही भावयोगसे पृथक् केवल एक शास्त्रीय मर्यादा बन कर रह जायेंगे । यदि मनेन रागात्मिका वृत्ति ही काव्यके आधार माने जायेंगे तो विरागजन्य भावाभिव्यक्तियोंको नोटिस मात्र समझ कर हम तिरस्कृत करते रहेंगे और भक्तिरससाधकोंकी विशाल कृतियाँ साहित्यकी श्रेणीसे अलग पुस्तकालयोंकी निधि बन कर ही रह जायेंगी । मेरा तात्पर्य यह है कि मनकी समस्त स्थितियों व प्रकृतियोंको राग-विराग किसी भी स्थिति में यदि रसानुभूति होती है और वह अभिव्यक्ति पानेके आवेगसे व्याकुल होकर, विमल उच्छ्वास होकर, व्यक्त होती है तो आलोचकोंकी रसव्यंजनाकी श्रेणीमें गिनी जानी चाहिये अन्यथा हम मानव मनके प्रति न्याय नहीं कर सकेंगे और अनेकानेक प्रतिभाएँ विलुप्त हो जायेंगी । नाहटा-बंधुओंके सृजन स्वांत:सुखाय व बहुजनहिताय दोनों ही हैं । भँवरलालजीने प्रायः स्वान्तः सुखाय रचनायें ही की हैं और जहाँ ज्ञान और कार्य दोनोंका ही समवेत सृजन हुआ है वहाँ सामाजिक चेतनाका प्रतिफलन ही स्वीकार करना पड़ेगा। इनकी कृतियोंको हम मौलिक, अनूदित तथा सम्पापित, इन तीन विभिन्न श्रेणियोंमें रखेंगे । रचनाओंके आकलन स्वयं अपने महत्त्व प्रगट करेंगे । पाठक और विद्वद्वर्ग तथा अन्यान्य चिन्तक निर्णय करेंगे कि इन स्वतंत्र प्रकृति साहित्य साधको के सृजनकी भूमि क्या है ?, इनकी आकांक्षायें क्या हैं ? और इनका कथ्य क्या है ?
काल - क्रमानुसार निम्नांकित विरचित व सम्पादित ग्रंथोंके सम्पादन, अनुवाद, व्याख्या, चरित्रचित्रण, संस्मरण, शोध एवं अनुसंधानात्मक विषयोंके अतिरिक्त काव्य, स्तवन, प्रशस्ति विषयक पुस्तकोंकी सूची प्रस्तुत है । पुरातत्व के प्रति इनके आकर्षणने, धर्मके प्रति आस्थाने और साहित्यके प्रति इनकी चित्तवृत्तिने इनकी बहुदर्शिनी - बहुस्पर्शिनी प्रतिभाको विविध विषयोंकी ओर उन्मुख किया है। श्री अगरचन्द नाहटाके साथ सम्पादित ग्रन्थों की सूचीके पूर्व इनके द्वारा स्वतंत्ररूप से सम्पादित व विरचित पुस्तकोंकी तालिका इस प्रकार हैप्रकाशित
१. सती मृगावती (स० १९८७ )
२. राजगृह (स० २००५)
३. समयसुन्दर रास-पंचक (स० २०१७ )
४. हम्मीरायण (स० २०१७ )
५. उदारता अपनाइये ( स० २०१७ )
६ पद्मिनीचरित चौपई (स० २०१८ )
७. सीतारामचरित्र (स० २०१८) ८. विनयचन्द्रकृति कुसुमांजलि (स० २०१९) ९. जीवदया प्रकरण काव्यत्रयी (स० २०२१)
१०. सहजानन्द संकीर्तन (स० २०२२ )
११. बानगी ( राजस्थानी भाषा में) (स० २०२२)
१२. पावापुरी (स० २०३०)
१३. श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मन्दिरका सार्द्ध शताब्दी स्मृतिग्रंथ
१४-१५. जिनदत्तसूरि सेवा संघ द्वारा प्रकाशित स्मारिका द्वय
प्रथम (स० २०२३) तथा द्वितीय (स० २०२९ )
९६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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