SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विद्वानोंसे समाधान चाहा है । उन्होंने अनेक गच्छोंकी पट्टावलियाँ भी प्रस्तुत की हैं और संशोधनकी आवश्यकता पर बल दिया है । इस प्रकारके लेख प्रायः जैनध्वज, श्रमण, जैनसत्यप्रकाश, वीरवाणी और महावीर सन्देश जैसी पत्रिकाओंमें छपते रहे हैं । ५. जैन जातियाँ और वंश - इस उपशीर्षकमें श्री नाहटाजीने जैनधर्म और जातिवाद ओसवंश स्थापना जैसे लेखोंको लिखा है । इन लेखोंमें उनका पुरातत्त्वविद् और इतिहासज्ञका स्वरूप सामने आता है । उनके ये लेख अनेकान्त, जैनभारती, ओसवाल नवयुवक जैसे पत्रोंमें प्रकाशित होते रहे हैं । ६. जैन महापुरुष - नाहटाजीने जैन आचार्यों तथा विद्वानोंकी प्रमाणपुष्ट जीवनियाँ लिखकर उन्हें विद्वत् समाजके सम्मुख प्रस्तुत किया है। जैन समाज में पूजित श्री कृष्ण, वत्सराज उदयन सम्राट विक्रम, आचार्य हरिभद्रसूरि तथा सती मृगावती, राजीमति आदिपर प्रकाश डालकर उन्होंने उनके आदर्श स्वरूपको जिज्ञासुओंके सम्मुख प्रस्तुत किया है। उसी उपशीर्षकमें उन्होंने युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि और सम्राट् अकबर जैसे ऐतिहासिक लेख भी लिखे हैं । ७. जैन महापुरुष (श्रावक ) - इस शीर्षकमें श्री नाहटाजीने अनेक प्रश्न उठाये । जैसे, क्या पैथड़साह पल्लीवाल थे, क्या भामाशाह गौड़ थे । श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई और श्री पूर्णचन्दजी नाहर जैसे विद्यारत्नके प्रति उन्होंने अपनी श्रद्धा संस्मरणके माध्यम से इसी शीर्षक में व्यक्त की है । पण्डितरत्न सुखलालजी और पण्डित भगवतजीपर तो श्री नाहटाजीने लिखा ही, उन्होंने जैनेतर महापुरुषों तथा विद्वानोंपर भी मुक्तहस्त लिखा है । चूँकि श्री नाहटाजीका जीवनरस आध्यात्मिकरस है । इसलिए उन्हें महर्षि रमण, अरविन्द और यतीजी ने बहुत प्रभावित किया है। उन्होंने अपनी इस भावनाको महर्षि रमणका आत्मज्ञान शीर्षक लेख में व्यंजित किया है। इस प्रकारके नाहटाजीके लेख राजस्थान क्षितिज, जैन जगत्, वीरवाणी, प्रजामित्र जैसे पत्रोंमें प्रकाशित होते रहे हैं । विभाग २ : साहित्य श्री नाटाजी शोध मनीषी हैं । वे शोधरसके आस्वादक हैं और शोध और साहित्यका पुरातन सम्बन्ध है । साहित्यकी अधुनातन नवीन विधाओंसे नाहटाजीका अनुराग नहीं है । वे मध्यकालीन, भक्त कवियोंकी कविताओंके अध्ययन, मनन और अन्वेषण में ही दत्तचित्त रहते हैं । चूँकि साहित्य में शोधका क्षेत्र प्रायः पुरातनसे सम्बद्ध है, इसलिए नाहटाजी शोधक्षेत्र में संलग्न रहते हैं, उन्होंने अपने अनुभव के बलपर हस्तलिखित ग्रन्थोंकी समस्याओंसे सम्बद्ध अनेक लेख लिखे हैं । उन्होंने हजारों जैन ज्ञान भण्डारोंको देखा, पढ़ा और सुव्यवस्थित एवं सूचीबद्ध किया है । लगभग एक लाख पाण्डुलिपियोंकी वे सूची बना चुके हैं । नाहटाजीने ज्ञान भण्डारोंके अपने अनुभवोंको अनेक लेखोंके माध्यमसे प्रकाशित किया है । श्री नाटाजीने साहित्यका इतिहास और साहित्यकारोंको भी अपना निबंध विषय बनाया है । उन्होंने जैन और जैनेतर साहित्यपर समान भावसे अपनी कलम चलायी है । इस प्रकारके निबंधों में उन्होंने पृथ्वीराजरासोकी प्रामाणिकता आदिपर तथा कल्पसूत्रपर विशेष प्रकाश डाला है । उन्होंने संस्कृत साहित्य और साहित्यकारोंपर भी पर्याप्त निबंध लिखे हैं । इसी प्रकार प्राकृत साहित्य और साहित्यकार, अपभ्रंश साहित्य और साहित्यकार, राजस्थानी साहित्य और साहित्यकार आपके प्रिय विषय रहे हैं । आपने आलोचना साहित्यको भी अच्छी देन दी है । साहित्यिक संस्थाओंपर भी आपने अनेक निबंध लिखे हैं । १० Jain Education International For Private & Personal Use Only जीवन परिचय : ७३ www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy