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________________ भक्ति काव्य है । इसके बड़े-बड़े अभिवद्धित संस्करण कई उपलब्ध हैं पर मूल लघुकाव्यका एक मात्र संग्रह इसकी प्राचीनतम प्रतिसे यह सम्पादन किया गया है। श्री नाहटाजीके सम्पादकत्वमें निम्नांकित पुस्तकें छप रही हैं१. मरु-गूर्जर जैनकवि और उनकी रचनाएँ। २. दम्पति विनोद (इन्स्टीट्यूटसे कई वर्ष पूर्व मुद्रित पर प्रकाशित अब होगी ।) ३. प्राचीन गुर्जर काव्य संचय (ला० द० मन० वि० स० स०) निम्नांकित पुस्तकें श्रद्धेय श्री अगरचन्दजी नाहटाके सत्परामर्शसे उनके साहित्यप्रेमी विद्वान् भ्रातृपुत्र श्री भँवरलालजी नाहटाके सम्पादकत्वमें प्रकाशित हुई हैं। पुस्तकोंकी भूमिकाएँ अत्यन्त सारगर्भित विद्वत्तापूर्ण और प्रमाणपुष्ट हैं । कतिपय भूमिकाएं तो अपनेआपमें एक शोधपूर्ण ग्रन्थका रूप ले लेती हैं। पुस्तक नामावली १. सहजानन्द-संकीर्तन । २. बानगी। ३. जीवदया प्रकरण-काव्यत्रयी। ४. विनयचन्द्र-कृतिकुसुमांजलि । ५. पद्मिनीचरित्रं चौपई। ६. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिचरितम् । ७. समयसून्दर रास पंचक । ८. हम्मीरायण । ९. राजगृह । १०. सती मगावती।। श्री नाहटाजीका कृतित्व पुस्तकों तक ही सीमित नहीं है वे गत चालीस वर्षोंसे विभिन्न पत्र पत्रिकाओंमें निरन्तर लिखते आ रहे हैं । उनके लगभग तीन हजार सारगभित लेख. पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित हो चुके हैं। वे प्रतिमास लगभग साठ पत्र-पत्रिकाओंमें लिखते रहे हैं। उनके लेखोंकी अपूर्ण सूची संवत् २०१० में प्रकाशित हई थी, उस सूची में उनके लेखोंकी संख्या १०८४ बताई गयी है। लेकिन आज नाहटाजीके लेखोंकी संख्या ३००० से ऊपर हो गयी है। वे ज्यों-ज्यों बद्ध होते जाते हैं उनका विवेक-चिन्तन प्रौढ़ और लेखनशक्ति अधिक सक्रिय और सबल होती जाती है। श्री नाहटाजीके लेखोंको विषय-वर्गीकरणकी दष्टिसे हम निम्नांकित शीर्षक एवं उपशीर्षक दे सकते हैंविभाग १ : सन्दर्भ, इतिहास, पुरातत्त्व, कला १. सन्दर्भ-ये लेख नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दुस्तानी, ज्ञानोदय, जैनधर्मप्रकाश प्रभूति पत्रिकाओंमें प्रकाशित हए हैं। इनका वर्ण्य विषय विविध है। अधिकांश लेख भाषा वैज्ञानिक और दार्शनिक विषयोंसे सम्बद्ध हैं। २. इतिहास-ये लेख महावीर सन्देश. जैन सिद्धान्त भास्कर, अनेकान्त, राजस्थान भारती प्रभूति पत्रिकाओंमें प्रकाशित हुए हैं। इनमें राजवंशोंके इतिहास, जैन इतिहास, प्राचीनतम सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थितिसे सम्बद्ध लेख अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। ३. पुरातत्त्व नगर, तीर्थ, मन्दिर, प्रतिमा लेख आदि-नाहटाजीने राजपूतानेकी बौद्ध वस्तुएँ, चित्रकला जैनमूर्तिकला, आबू, चित्तौड़ आदिपर शतशः लेख लिखे हैं। इनका प्रकाशन धर्मदूत, शोधपत्रिका, कल्पना, लोक वाणी, जैनसत्यप्रकाश प्रभृति पत्रिकाओंमें हुआ है। ४. जन सम्प्रदाय तथा गच्छ-नाहटाजीने जैनधर्म सम्प्रदाय और गच्छोंपर अनेक प्रकारसे प्रकाश डाला है। यति समाजकी उन्नतिके लिए जहां उन्होंने नये उपाय सुझाये हैं वहाँ उन्होंने प्राचीन जैनधर्मके गुण भी गाये है । उन्होंने अपने लेखोंमें अनेक प्रकारके छोटे-मोटे साम्प्रदायिक प्रश्न भी उठाये हैं और गच्छ ७२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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