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७० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ वाणी और सरल हृदय से जब भी और जो भी कुछ निकल जाता है वैसा वास्तव में हो भी जाता है।
आज भौतिक उपलब्धियों की दौड़ में मानव आध्यात्मिक पहलुओं को भुलाने का प्रयास कर रहा है किन्तु अशांत मन को शांति आध्यात्मिक जीवन के बिना न तो कभी सम्भव ही है और न कभी साकार ही। हमें आज धर्म, मजहब और सम्प्रदायों की संकीर्ण गलियों से ऊपर उठकर ऐसी आध्यात्मिक-गंगा की धारा में निमग्न शाश्वतजीवन-कमल के दर्शन कर उनके उच्च आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी ही चाहिए। इस महान संत के जीवन में हम एक उच्च प्रतिभा और अद्भुत सादगी के दर्शन प्राप्त करते हैं । त्याग और करुणा के अक्षय भण्डार शांत-स्वभावी वयोवृद्ध मुनि श्री कस्तूरचंदजी महाराज साहब निश्चय ही आज स्थानकवासी जैन समाज में एक विशाल और सघन वट-वृक्ष की तरह अपनी शीतल छाया फैलाये हुए हैं जिनका आश्रय पाकर विभिन्न धार्मिक मनोवृत्तियाँ पुष्पित और पल्लवित हो रही हैं। इस महान संत के चिरायु होने की मङ्गल-कामना है।
परिभाषा में छलकता गुरुदेव श्री का स्वरूप
इह लोग हिरवेक्खो, अप्पडिबद्धो परम्मि लोयम्मि ।
जुत्ताहारविहारो रहिदकसाओ हवे समणो । इस लोक में निरपेक्ष, पर-लोक में अप्रतिबद्ध-अनासक्त, आहार-विहार में विवेकशील, कषाय-रहित सच्चे श्रमण होते हैं ।
उक्त गुणों की छवि श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के जीवन में साकार दिखाई देती है।
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