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अभिनन्दन - पुष्प भाँति निजानन्द - निमग्न शांत- मुद्रा में बैठे हिमालय स्वरूप, अटल भाव से जीवन-साधना में तल्लीन यह परम-साधक ऐसा प्रतीत होता है मानों साध्य को पाकर अब मन को उसी में मग्न किये संसार की किसी बुराई भलाई से अपने को अलिप्त रख प्राणी- मात्र के लिए मङ्गल - कामना कर रहा हो ।
इस महान संत की वाणी से जो वाक्य निकलते हैं वे सरलता की सीमा को पार कर जाते हैं । आपकी पवित्र वाणी को श्रवण करने और दर्शन करने भारतवर्ष के प्रायः सभी प्रांतों के हजारों जैन-अजैन बारहों-मास रत्नपुरी रतलाम का तीर्थ कर मृदु-मंगल शब्दावलियों को श्रवण कर धन्य और गद् गद् हो जाते हैं । आपकी वाणी में सरलता के साथ एक गम्भीरता भी है। हर दुःखी मानस को यहाँ शान्ति मिलती है। हर निराशमन को यहाँ आशा की सुकुमार किरण अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रवृत्त करती है । संसार की पीड़ा से सिहरे हर मनुष्य को गरीब-अमीर और ऊँच-नीच के भेदों से मुक्ति मिलकर उसे आध्यात्मिक जीवन दृष्टि उपलब्ध होती है जो भौतिक संतापों से हमें मुक्ति दिलाकर जीवन के उच्च आदर्शों को अपनाने की मूल्यवान प्रेरक कड़ी है ।
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धर्म-शास्त्रों के असीम ज्ञान के अतिरिक्त ज्योतिष के आप माने हुए प्रकाण्ड पंडित हैं । आप अपने समय के ओजस्वी वक्ता रहे हैं । आपके व्याख्यानों में मौलिक चिन्तन और असीम शास्त्र ज्ञान का सहज ही परिचय हो जाता है । आपकी स्मरण शक्ति और बौद्धिक क्षमता अद्भुत है । आपकी आयु आज ८६ वर्ष के करीब है और दीक्षा-वय भी कोई ७२ वर्ष के आस-पास है । परन्तु शास्त्रों की एक-एक पंक्तियां अर्थ-भावार्थ सहित याद ही नहीं उन्हें प्रस्तुत करने की विचित्र शैली के कारण आपका व्याख्यान रोचक हो जाता है । निश्चय ही प्रतिभा की यह मूल्यवान धरोहर समाज की एक अनुपम उपलब्धि है ।
आपके जीवन का प्रमुख लक्षण प्राणी मात्र के लिए " साता उपजाओ" अर्थात् शांति पहुँचाओ है । गरीबों और असहायों की सेवा करने की आप हमेशा सीख देते रहे हैं । आप अमीर-गरीब दोनों वर्गों में समान रूप से प्रिय हैं । आप जहाँ अमीरों के हृदय में गरीबों और असहायों के लिए दया और प्रेम की भावना जगाते हैं वहीं गरीबों के आँसू पोंछकर अपने सरल शब्दों से उन्हें सांत्वना का अमिय-पान करा कर उनके निराश मन में आशा का जगमगाता दीपक प्रज्वलित करते हैं । दया आपके हृदय में कूट-कूट कर भरी है और किसी भी मनुष्य को एक बार देखने के बाद भूलते नहीं हैं । इस महान संत के दर्शन करने वाला कोई भी व्यक्ति इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । जो व्यक्ति ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त करने लगता है उसके लिए अनेक किंवदन्तियाँ भी स्वयमेव प्रारम्भ हो जाती हैं । आज अनेक लोगों की यह धारणा है कि ये जैसा जिसको कह देते हैं वैसा हो जाता है और ये लब्धि के भण्डार हैं । किसी को सच्चे मन से कुछ कह देंगे तो उसका कल्याण हो जायेगा और वह मनचाही उपलब्धि पा जायेगा । परन्तु सच्ची बात तो यह है कि "भोले भाव बसे रघुराई" वाली कहावत के अनुसार इनके विशुद्ध
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