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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
हार्दिक अभिनन्दन : हृदय के प्रांगन में
। श्री राजेन्द्र मुनि जी महाराज (उपदेशाचार्य)
महामनस्वी संत-मुनियों का महकता जीवन पुष्प एक विराट् अध्याय है। सुष्ठुरीत्या जिसका अध्ययन-अध्यापन करके तत्कालीन समाज जनोपकार कल्याण में प्रवत्त होता हआ अपने जीवनोत्थान कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
ऐसे तेजस्वी एवं कर्मठ साधक व्यक्तित्व को अनेक उपमाओं से उपमित करना कोई अतिशयोक्ति नहीं मानी जाती है
उरग गिरि जलण सागर, नहयल तरुगण समो जो होई। भमर गिर धरणी जलरुह, रवि पवण समो जओ समणो॥
-दशवै० नियुक्ति, गा० १५७ जिसके जीवन में सर्प के तन की तरह मदुता, पर्वत की तरह जिसके जीवन में स्थैर्यता, अग्निवत् जिसका जीवन प्रज्वलित है। समुद्र की तरह जिसका जीवन गम्भीर है, आकाश की तरह जिसका जीवन विराट् है, जिसका जीवन वृक्ष की तरह आश्रयदाता है, मधुकर की तरह जिसकी वृत्ति है, जो अनेक स्थानों से मधु को बटोरता है, हरिण की तरह जो सरल है; भूमि की तरह जो क्षमाशील है, कमल की तरह जो निर्लेप है, सूर्य की तरह जिसका जीवन तेजस्वी है और पवन की तरह जो अप्रतिहत विहारी है। उक्त उपमाओं से अलंकृत साधक जीवन को श्रमण कहा है।
___ मालवरत्न पूज्य गुरुदेवश्री कस्तूरचन्दजी महाराज के गौरव-गरिमा-मण्डित व्यक्तित्व को किसी एक संकीर्ण परिधि में आबद्ध करना भारी भूल होगी। महाराजश्री का प्रशस्त प्रयास सभी क्षेत्रों में अत्यधिक सक्रिय रहा है। समाज के हजारों-लाखों नर-नारी आपकी कृपा के पात्र रहे हैं। अतएव मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
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