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________________ अभिनन्दन-पुष्प करुणा-कृपा के कुबेर । प्रदीप मुनि 'शशांक' भगवान महावीर के साधना-शासन में स्व० आचार्यवर्य परमादरणीय श्री हुक्मीचन्द जी महाराज की गच्छ परम्परा में स्वनामधन्य एवं प्रातः स्मरणीय अनेक महान् मुनिवर हो गये हैं। वे सभी अपनी-अपनी जीवन-साधना के प्रकाशमान नक्षत्र थे। उसी पावन धारा के वर्तमान में सर्वोच्च, वरिष्ठतम, ज्योतिकेन्द्र, साधुरत्न, उपाध्याय, ज्योतिर्विद परमाराध्य गुरुदेवश्री कस्तूरचन्दजी महाराज हैं। जिनके वरद्-शासन की प्रभावना आज मेरु से भी ऊवोन्नत है। महा-महिम गुरुवर्यश्री के जीवन की गरिमा के सम्मुख संसार की सम्पूर्ण उपमायें तेज एवं ओजहीन हैं। वे वात्सल्य एवं करुणा के वास्तव में जीवन स्रोत हैं। जिस किसी ने भी आपका पावन सान्निध्य एकबारगी पा लिया। मेरी दृष्टि से वह निहाल हो गया। उसे फिर भटकने की एवं भीख मांगने की आवश्यकता नहीं। मेरे गुरुदेवश्री के पास क्या नहीं है ? विश्व का वैभव ही जिनके चरणश्री का स्पर्श कर सौभाग्य सराहता है। कभी-कभी तो अनचाहे भी वरदायी आशीर्वाद-निधि उपलब्ध हो जाती है । कुबेर के पास से कभी कोई खाली नहीं आ सकता। मेरी हार्दिक अभिलाषा यही है कि मैं हरदम पावन पुरुष, पूज्यवर, मालवरत्न गुरुदेवश्री के सान्निध्य लाभ को पाता हुआ जन-मन को ज्ञान-दर्शन-चारित्र की त्रिवेणी संगम की तीर्थता की ओर अग्रसर कर सकूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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