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४६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ श्रमण संघ की विरल विभूति :
उपाध्याय कस्तूरचंदजी महाराज - राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी
__ श्रमण संघ की विरल विभूति स्थविर पदालंकृत श्री कस्तूरचंद जी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है, यह जानकर मेरा हृदय आनंद विभोर हो उठा, क्योंकि वे एक ऐसे विशिष्ट शिष्य संत हैं जिनके चरणारविन्दों में श्रद्धा के सुमन समर्पित करने का मुझे सुअवसर प्राप्त हो रहा है।
कस्तूरचन्दजी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य मुझे एक बार नहीं, अनेक बार प्राप्त हुआ है । जहाँ तक मेरी स्मृति है मैंने उनके दर्शन सर्वप्रथम मेदपाठ की राजधानी उदयपुर में किये। उसके पश्चात् ब्यावर, सेंधडा, सादड़ी, सोजन और जयपुर में किये। जब भी मैंने उनके दर्शन किये, मुझे उनके सन्निकट बैठने का अवसर प्राप्त हुआ, तब मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि मैं एक सुगुणों की सुन्दर वाटिका में बैठा हुआ हूँ, जहाँ पर रंग-बिरंगे सुगन्धित सुमन खिल रहे हैं, महक रहे हैं और अपनी मधुर सुगन्ध से जनमन को आकर्षित कर रहे हैं । कस्तूरचन्द जी महाराज जहाँ आगम साहित्य के, स्तोक साहित्य के, गंभीर विद्वान हैं वहाँ वे ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित हैं। ज्योतिष के सम्बन्ध में उनकी सूक्ष्म जानकारी है । जम्बूदीप प्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति का उन्होंने अनेक बार परिशीलन किया है जिसके फलस्वरूप ग्रह-नक्षत्र, तारागण, नदी पर्वत आदि का उन्हें गहरा परिज्ञान है। जब भी उनके पास बैठिए, तब भी वह ज्ञान का खजाना खोल देंगे, जिज्ञासु जितना भी चाहें, उसमें से ग्रहण कर लें, और वे राजा कर्ण की तरह दान देने में आनन्द का अनुभव करते हैं।
उनके जीवन की महत्वपूर्ण विशेषता है-वे स्वभाव से सरल हैं, नम्र हैं, दयालु हैं। वे परोपकार परायण वृत्ति के हैं। किसी भी दीन दरिद्र को देखकर उनका हृदय मोम की तरह पिघल जाता है और जब तक उसे सहयोग न दिला देते हैं तब तक उन्हें शान्ति नहीं होती है।
श्रद्धेय कस्तूरचन्दजी महाराज संगठन के महान् प्रेमी रहे हैं, श्रमण संघ के निर्माण में उनका अपूर्व योगदान रहा है। संगठन के लिए समय-समय पर उन्होंने अपने विचारों को बदलकर एकता के लिए प्रयास किया है जिसके फलस्वरूप श्रमणसंघ एक बना रहा ।
मैं उस महान संत की विशेषताओं पर क्या प्रकाश डालूं ? क्योंकि उनका जीवन आदि से अन्त तक मिश्री के समान मधुर रहा है, इलाइची के समान सुगन्धित रहा है और नवनीत के समान कोमल रहा है। मेरी यही हार्दिक मंगल कामना और भावना है कि ये संत प्रवर दीर्घकाल तक समाज को अपने ज्ञान-दर्शन-चारित्र की निर्मल ज्योति प्रदान करता रहे । शायर के शब्दों में
तुम सलामत रहो वर्ष हजार, हर वर्ष के दिन हों पचास हजार ।
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