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0 श्री कान्ति मुनि 'विशारद'
[मेवाड़भूषण श्री प्रतापमल जी महाराज के शिष्य]
गुरु देव श्री के
| 1 प्रेरणा-पूरक
एक मुनि थे, जिनकी सुमधुर ख्याति थी
'श्री पुनमचन्द जी महाराज के नाम से । सद्भावनापूर्वक कोई भी बड़े-बुजुर्ग संत पढ़ाते-सिखाते याद करवाते एवं अन्य आवश्यक तात्विक जानकारी करवाते तो श्री पुनमचन्द जी महाराज उनसे छुटकारा पाने के लिए तपाक से कह दिया करते थे-क्या करूँ ? ज्ञानावरण कर्म का ऐसा उदय भाव है कि-मैं कितनी भी मेहनत करूं फिर भी न मुझे ज्ञान चढ़ता है और न मुझे तत्त्व की बातें याद रहती हैं। इस कारण ज्ञानाभ्यास के लिए रटनपटी करना, परिश्रम करना कोई प्रयोजन नहीं रखता है। केवल नवकार महामंत्र की माला फेरता रहूँगा तो भी मेरी नैया पार हो जायेगी। फिर व्यर्थ की माथा-पच्ची करके नींद हराम क्यों करूं ? इस प्रकार विचार व्यक्त करते हुए अपनी कमजोरी को ढंके जा रहे थे। ___ "हतोत्साह होकर मुनि श्री पुनमचन्द जी महाराज ज्ञानाभ्यास में जैसा चाहिए वैसा उद्यम नहीं कर रहे हैं।" यह व्यवहार हमारे चरित्रनायक श्री को अच्छा नहीं लगा। द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव देखते हुए साधक के जीवन में थोड़ा-बहुत ज्ञान-ध्यान एवं
आवश्यक जानकारी तो होनी ही चाहिए। For Private & Personal Use Only
प्रएका प्रसंग
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