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८८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
यही प्रार्थना है कि आप भी मेरा अनुकरण करें। ताकि आपका पिछला जीवन अधिक धर्म में बीते ।
अब मुझे क्या करना चाहिए ? अर्थ का मोह - पाश बेटे को न बांध सका और न रोक सका । विवाह का पाश भी व्यर्थ ही रहा । हीरा संसार रूपी कर्दम में से निकल रहा है । इसके दीक्षित हो जाने पर मैं अकेला घर पर क्या करूंगा ? पुत्र के घर पर रहने पर ही तो मेरी वाह ! वाह !! है । हीरा को बार-बार धन्य है, क्या खाया, क्या पिया और क्या देखा ? एकदम दीक्षित होने का निर्णय कर लिया इस छोटी अवस्था में। मैं कहाँ तक कर्म-बन्धन करता रहूँगा ? हीरा के साथ मुझे भी दीक्षित हो जाना चाहिए ताकि जीवन का हित हो सके और पिता-पुत्र की जोड़ी बिछुड़ भी नहीं सके । एकदम पिता के हृदय में परिवर्तन आया। उन्होंने भी मन ही मन पुत्र के साथ साधु बनने का निश्चय किया । पुत्र के वास्तविक वैराग्य ने पिता के अन्तर्मन को धर्मपथ के लिए सजग कर दिया ।
स्वर्णिम अवसर का सदुपयोग
उन्हीं दिनों अर्थात् सं० १९७६ में वादीमानमर्दक दादागुरुजी श्री नन्दलाल जी महाराज आदि मुनि मण्डल का चातुर्मास इसी मन्दसौर ( दशहपुर) में था । उनके वर्षावास से वैराग्यवान आत्माओं की नींव और अधिक सुदृढ़ बनी । ज्ञानाराधना में आशातीत अभिवृद्धि हुई एवं प्रभावशील व्याख्यानों से उनका मार्ग प्रशस्त भी होता रहा । खुशी की अभिवृद्धि करने वाले अपने ही समवयस्क देवगढ़ निवासी वैराग्यानन्दी प्रतापमल गांधी को पाकर बालक हीरालाल की भावना संयम के प्रति और बलवती बनी ।
पिता-पुत्र दोनों मुमुक्षुओं की साध्वोचित योग्यता एवं आवश्यकीय धर्माभ्यास (जैसे साधु प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल, दशवैकालिकसूत्र, भक्तामर, लघुदण्डक, गुणस्थान द्वार आदि) पूरा होने पर वि० सं० १९७९ माघ शुक्ला तीज शनिवार की मंगल वेला में रामपुरा की शस्य - श्यामला स्थली में दादागुरुजी श्री नन्दलाल जी महाराज साहब ने पिता-पुत्र को भगवती दीक्षा प्रदान की। दोनों मुमुक्षु शिष्य और प्रशिष्य के रूप में घोषित किये गये । इस शुभावसर पर पं० प्रवर श्री देवीलालजी महाराज, भद्रमना श्री भीमराजजी महाराज, आदर्श त्यागी पं० श्री खूबचन्दजी महाराज, तपस्वी श्री हजारीमलजी महाराज, चर्चावादी पं० श्री केशरीमलजी महाराज आदि १७ मुनिवृन्द और प्रवर्तनी महासती श्री प्याराजी आदि सात सतियाँ उपस्थित थीं । इस दीक्षोत्सव में सम्मिलित होने के लिए बाहर से हजारों श्रद्धालु दर्शक मौजूद थे । जन-जीवन में सराहनीय उत्साह था। सभी नवदीक्षित मुनिवरों के त्याग और वैराग्य भावना की शत-शत कंठों से प्रशंसा कर रहे थे । इस प्रकार रामपुरा श्री संघ ने पूरे हर्षोल्लास के क्षणों में इस मांगलिक महोत्सव को पूरा करके जिनशासन की श्लाघनीय और ऐतिहासिक प्रभावना की ।
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