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जीवन दर्शन
सस्नेह पुनः ताराचन्दजी बोले – “बेटा ! यह कोई जल्दी का प्रश्न नहीं है । इस सम्बन्ध में जरा शान्तचित्त से विचार करना । मैंने तो तुम्हारा जीवन सुखी रहे, इस आशय से अपने भाव व्यक्त किये हैं ।"
श्रीमान् लक्ष्मीचन्दजी अपने पुत्र हीरालाल के वैराग्योत्पादक विचारों को सुनकर चौंक पड़े । सचमुच कहीं हीरालाल साधु न बन जाय । उन्होंने हाथ निकलते हुए पंछी को पकड़ रखने के लिए मन मोहक जाल फैलाना चाहा, वह जाल जिसमें आबद्ध होकर विरले ही नर-नारी निकल पाते हैं । यद्यपि विवाह के योग्य उम्र नहीं थी, फिर भी अतिशीघ्र विवाह कर देने का निश्चय किया । योग्य कन्या उनकी दृष्टि में थी ही ।
एक दिन कन्या के पिताश्री, हमारे चरित्रनायक की जन्म कुण्डली मंगवाकर देख रहे थे । ठीक उसी समय परम प्रतापी, वादीमानमर्दक, चारित्रचूड़ामणि दादागुरु जी श्री नन्दलाल जी महाराज आहारार्थ पधार गये । कुण्डली देखने वाले श्रीमान् से स्वाभाविक रूप से गुरुदेव ने पूछा- यह कुण्डली किसकी है ?
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प्रत्युत्तर में उस महाशय ने कहा - " महाराजश्री ! यह कुण्डली हीरालाल जी दुगड़ की है । मैं अपनी पुत्री का विवाह इनके साथ करना चाहता हूँ, तो सरसरी निगाह से ग्रहगोचर देख रहा हूँ ।
गुरुदेव ने कहा- आप व्यर्थ ही कोशिश करके समय बर्बाद न करें । मैंने पितापुत्र दोनों को जिन - शासन में दीक्षित होने का उपदेश दिया है । मेरा आत्म-विश्वास है कि दोनों अनगार वृत्ति धारण करेंगे ।
हाँ गुरुदेव ! कुण्डली को देखने पर भी ऐसा लगता है कि इनके विवाह का योग नहीं है, परन्तु दीक्षा का योग है । ख्याति प्राप्त सुसमाधिवन्त साधु बनेंगे और चारों दिशाओं में जिन - शासन की खूब प्रभावना बढ़ायेंगे ।
दीपक से दीपक दीप्तिमान होते हैं पुत्र की वैराग्यवर्धक प्रवृत्ति और निवृत्ति को देखकर श्रीमान् दुगड़ जी असमंजस में पड़े बिना नहीं रह सके । बोले
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"बेटा ! दीक्षा लेना कोई बुरा नहीं है । पर तेरे लिए जन अपवाद कुछ और बोल रहा है । अपने सगे-सम्बन्धियों का कहना है कि वंश की वृद्धि के लिए किसी भी स्थिति में हीरालाल को दीक्षा की अनुमति नहीं दी जाय । उसे घर पर ही रखा जाय ।"
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पिताजी ! आप कैसी बातें कर रहे हैं ? तीर्थंकरों का वंश भी कायम नहीं रहा तो क्या आपकी वंश-परम्परा कायम रहेगी ? विश्वास है ? जिसका नाम है, उसका (वस्तु) विनाश अवश्यंभावी है । तो फिर दीक्षा जैसे महान् कार्य के लिए विलम्ब करना क्या ठीक है ? दीक्षा लेने पर क्या वंश का नाम मिट जायगा ? मैं किसी भी परिस्थिति में रुकने वाला नहीं हूँ । आप अपना हिताहित सोच लें । मेरी तो आप से
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