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२२ : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ वे उद्भट विद्वान् थे • पं० प्रकाश हितैषी शास्त्री, देहली
डॉ० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य एक विशिष्ट विद्वान् थे। अध्ययन-मनन-लेखन एवं सम्पादन कार्यमें आपकी विशेष रुचि थी। अधिक समय तक पारिवारिक सुख साधनके अभावमें भी आपका लेखन कार्य चलता रहता था। न्याय विषयमें तो पूर्ण पारंगत विद्वान् थे। उन्होंने न्यायकुमुद, अकलंकग्रन्थ त्रय, प्रमाणमीमांसा, प्रमेयकमलमार्तण्ड, तत्त्वार्थ वृत्ति, न्यायविनिश्चयविवरण, राजवार्तिक-सिद्धिवि निश्चय जैसे न्यायके उच्चकोटिके ग्रन्थोंका सम्पादन एवं हिन्दो टीका, प्रस्तावना आदि लिखकर अपनो अपूर्व ज्ञान प्रतिभाका महान् परिचय दिया था एवं जैनदर्शन एक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखकर द्वादशांगका सार उसमें आपने भर दिया था। वे चतुर्मखी प्रतिभाके धनी थे । अनेक महत्त्वपूर्ण पदोंपर रहकर उनका विद्वत्तापूर्ण निर्वाह किया। भारतीय ज्ञानपोठके संचालक रहकर एक उच्चस्तरीय साहित्यिक पत्रिका ज्ञानोदयका सम्पादन भी किया। इस प्रकार वे देश, धर्म, समाजकी सेवामें अग्रणी रहे हैं। विद्वानों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं। अट तेजस्वी व्यक्तित्व • डॉ० भागचन्द्र जैन "भास्कर", नागपुर
पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य एक अटूट तेजस्वी व्यक्तित्वके धनी महाविद्वान् थे । उनका स्वाभिमान भरा पाण्डित्य, पारम्परिक विद्वत्ता भरा अगाध वैदुष्य, प्रतिभा और चिन्तनसे आपूर लेखन तथा सहयोगी मीठा व्यवहार सहाध्यायियों और समर्मियोंके बीच ईर्ष्याका कारण बना गया था। दूरदराज खुरई (सागर, म० प्र०) में जन्मे पं० जीने अपने ही अध्यवसाय और श्रमसे जो प्रतिष्ठा पाई वह आज भी अन्य किसीके लिए दुर्लभ रही है। उन्होंने अपने संघर्ष भरे जीवन में सिद्धान्तोंसे कभी समझौता नहीं उनके व्यक्तित्वकी बड़ी भारी विशेषता थी।
मुझे पं० जीके पास बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयीय संस्कृत महाविद्यालयमें शास्त्राचार्यके कतिपय प्राचीन जैन-बौद्ध-न्यायके ग्रन्थोंको पढ़नेका अवसर मिला । उनकी अध्यापन शैली बड़ी आकर्षक और स्नेहिल थी। न्यायके गूढ़ पारिभाषिक शब्दोंको वे इतनी सरल शैली में समझा देते थे कि छात्रकी परीक्षाकी तैयारी स्वतः हो जाती थी । दुरूह विषयको सुगम बना देना उनकी अध्यापन पद्धति की अन्यतम विशेषता थी।
जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों परम्पराओंके वे कुशल दार्शनिक अध्येता थे। उनके लेखनमें तुलनात्मक अध्ययन झलकता था। सिद्धिविनिश्चय टीका आदि जिन ग्रन्थोंका भी उन्होंने सम्पादन किया वे आज भी सम्पादन कलाके लिए मानदण्ड सिद्ध हो रहे हैं। उनकी सम्पादन शैली अनुकरणीय थी। चाहता था, इस विषयपर कुछ लिखू पर समयाभावके कारण लिख नहीं सका। हाँ, मैंने अपने अनेक व्याख्यानोंमें इस तथ्यको उनके सम्पादित ग्रन्थोंसे उद्धरण देकर स्पष्ट अवश्य किया है कि प्राचीन ग्रन्थोंका सम्पादन किस प्रकार किया जाना चाहिए । पाठ निर्धारण तथा काल निर्णय की उनकी क्षमता बेजोड़ थी।
पं० जीके अवसान हुए लगभग पैंतीस वर्ष गुजर चुके, पर आज भी उनसे रिक्त जगह सूनी पड़ी हई है। इस अपूरणीय क्षतिके जिम्मेदार कदाचित् हम लोग ही हैं। पण्डित परम्पराकी अक्षण्णताका प्रश्न जिस बेरहमीसे हमारे सामने खड़ा हुआ है, उसने पं० जीके व्यक्तित्वसे कुछ सीखनेके लिए हमें मजबर कर दिया है। काश, उनकी विद्वत्ताका कुछ अंश भी हमारी पीढ़ी ग्रहण कर लेती तो तुलनात्मक अध्ययन तथा प्राचीन ग्रन्थोंके सम्पादनमें हममेंसे अनेक लोग उनके शेष कार्यको किसी सीमा तक पूरा कर चुके होते ।
उन्हें विनम्र प्रणाम कर मैं अपनी आदराञ्जलि व्यक्त करता है।
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