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पूर्वाग्रह मुक्त विचार के धनी पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य अपने विषयके आचार्य हैं और तदुपरान्त खूब परिश्रमशील और अध्ययनरत अध्यापक हैं । आधुनिक अन्वेषणात्मक और तुलनात्मक दृष्टिसे विषयों और पदार्थोंका परिशीलन करनेमें यथेष्ट प्रवीण हैं। दार्शनिक, सांप्रदायिक और वैयक्तिक पूर्वाग्रहोंका पक्षपात न रखकर तत्त्व विचार करनेकी शैलीके अनुगामी है। श्रावणशुक्ला पंचमी सं० १९९६
मुनि श्री जिनविजयजी
स्याद्वाद विद्या के प्रकाशस्तम्भ डॉ. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यके स्मृति-ग्रन्थके प्रकाशनके समाचार से प्रसन्नता होना स्वाभाविक है। वस्तुतः यह कार्य बहुत पहले हो जाना चाहिए था। जैनधर्म, दर्शन, न्याय जैसे विषय तथा इनके दुर्लभ और कठिन साहित्यको सहज, सरल और बोधगम्य आधुनिक वैज्ञानिक शैलीमें प्रस्तुत करके डॉ० सा० ने भारतीय साहित्य और संस्कृतिकी महत्त्वपूर्ण विधाकी सेवा की है। उनके द्वारा सम्पादित एवं मौलिक ग्रन्थ ऐसे कीर्ति स्तम्भ हैं जो युगों-युगों तक उनकी स्मृतिका यशोगान कराते रहेंगे। स्मृति-ग्रन्थ प्रकाशन समिति और सम्पादक मण्डलको हमारा इस कार्य के लिए शुभ-आशीर्वाद है, क्योंकि उन्होंने डॉ० सा० की साहित्य साधनाके योगदानके मूल्यांकनका सुअवसर साहित्य जगत्को दिया।
आर्यिका स्याद्वादमती माताजी
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