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अपूर्व साहित्य सेवी डॉ० महेन्द्रकुमारजीका अध्ययन बहुत गम्भीर और विशद था, अपनी प्रखर प्रतिभा और अप्रतिहत मेधाके बल पर उन्होंने जो पाण्डित्य अधिगत किया था, वह वस्तुतः आदर की वस्तु है, सभी अध्येताओंके लिए महान् आदर्श है, भारतीय धर्म, दर्शन, न्याय शास्त्रोंके आप प्रकाण्ड विद्वान् थे, प्राकृत, संस्कृत जैसी प्राचीन भाषाओं पर आपका असाधारण अधिकार था । आपने अपने छोटेसे जीवनकालका प्रतिक्षण ज्ञानकी आराधना हेतु उपयोग किया है। ज्ञानकी गम्भीरता, विषयकी विशदता और भाषाकी सहज सुबोधता डॉ० सा० को साहित्य साधनाके त्रिभुज हैं, । आपके ग्रन्थ, आलेख, सम्पादित रचनाएँ आज भी अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं । उनके कार्यको आगे बढ़ाने वाले अभी भी दुर्लभ ही है । उनकी समर्पित सरस्वती आराधना आज भी समाजको विकास एवं प्रगतिकी प्रेरणा दे रही है। उनकी साहित्य सेवा अनुपम है। ऐसे मनीषीकी स्मृतिमें प्रकाशित स्मृति-ग्रन्थ ज्ञान प्रदीप बन अन्य साहित्याराधकों एवं वाणी साधकोंका पथ आलोकित करेगा। सम्पादक मण्डल एवं प्रकाशन समितिको हमारा शुभाशीष है।
उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज
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