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२४ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ
रसरसयुगनेत्रे (वी० नि० २४६६) वीरनिर्वाणवर्षे, प्रथमदलनवभ्यां
भौमवारान्वितायाम् । कृतिरियमगमन्मे पूर्णतां मासि भाद्रे, गुरुचरणकृपौघनान्तरेणान्तरायम्
(न्यायकूमदचन्द्र द्वितीय भाग के अन्त में अंकित ) विभाति सद्वृत्तवपुर्गणेशप्रसादवर्णी गुरुरस्मदीयः । प्रसादतो यस्य निरस्य विघ्नं करोमि निघ्नं सकलेप्सितार्थम् ।। मंजुलजैनहितैषोत्याख्यं पत्रं प्रचारयन् प्रथित । पूर्णगवेषणमभितः संचितजैनेतिहासश्च ॥ नाथुरामप्रेमी सन्ततमत्साहयन्नतिप्रेम्णा । न्यायकुमुदसम्पादनलग्नं चेतो ममाकार्षीत् ।। श्रीजैनवाणीप्रणयी मसद्दीलालः स्वधर्मस्य निषेवकोऽसि । यस्यानुकम्पाभिरहं चिराय स्याद्वादविद्यालयमाश्रयामि ।। तेनोदाहृतनाम्नां सतां त्रयाणां करारविन्देषु । अमलाकलंकशास्त्रत्रयं क्रमादय॑ते मोदात् ।।
(अकलंक ग्रन्थ त्रयम् में अंकित समर्पण पत्र)
निर्भीक पत्रकार के रूप में
पण्डितजी भारतीय ज्ञानपीठके स्थापनाकाल सन् १९४४ से ही उसके संस्थापक-व्यवस्थापक तथा मतिदेवी ग्रन्थमालाके सर्वप्रथम सम्मान्य नियामक एवं सम्पादक थे। जुलाई १९४९ से उन्होंने ज्ञानपीठ की शोध पत्रिकाके रूपमें 'ज्ञानोदय' मासिक का प्रकाशन किया, जिसके सम्पादकमण्डलमें उनके साथ-साथ मुनि कान्तिसागरजी तथा ५० फूलचन्द्रजी सि० शा० थे। शोध-पत्रिका जगत में अल्पावधिमें भी इसने अपन उच्च स्थान बना लिया था। इसके सम्पादकीय लेख बड़े ही विचारपूर्ण, निर्भीक, सामयिक समस्याओंके विश्लेषक, समीक्षक तथा सुझावपूर्ण होते थे। ऐसे सम्पादकीय वक्तव्योंमें हरिजनोद्धार, वर्णभेद एवं वर्गभेदसमाप्ति, गांधीवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार, समत्त्वयोग, विश्वशान्ति, शिक्षामें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता, नारी-जागरण, अर्थसंकट एवं विपन्नावस्था-ग्रस्त प्रतिभाशाली छात्रोंके लिए छात्रवृत्ति प्रदान करने सम्बन्धी विषयों पर उनकी लेखनी प्रभावकारी ढंगसे कार्य करती रही।
इस प्रकार पं० डॉ० महेन्द्रकुमारजीके बहुआयामी व्यक्तित्वके प्रति आज समस्त प्राच्य विद्या जगत् श्रद्धावनत है। इन्होंने साहित्य साधना का जो प्रशस्त मार्ग दिखलाया, वह साहित्यिक इतिहासमें स्वर्णाक्षरों में लिखा जायगा । पूजनीय व्यक्तियों की पूजासे ही समाज यशस्वी बनकर प्रगति कर सकता है। यह एक दुःखद प्रसंग है कि जैन विद्याके क्षेत्रमें आज जैन लोग नगण्य हैं, जैनेतर विद्वान् उत्साहवर्धक उच्चस्तरीय कार्य कर अपनी प्रगति कर रहे हैं । जैन समाजके नवयुवकों को उनसे शिक्षा लेकर आगे आना चाहिए और पूज्य पंडितजीके मार्ग का अनुकरण करना चाहिए ।
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