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६ सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ
प्राप्त होता है तथा महामहिम व्यक्तित्व उभरकर छविरूपमें अंकित होता है व्यक्तित्वके स्पष्ट अवबोधके लिए इस प्रकारके समालोचनात्मक लेखोंका होना आवश्यक था ।
महावीर प्रेस के व्यवस्थापक तथा अभिनन्दन ग्रन्थमें आदिसे अन्त तक रुचि लेकर इसे सुरुचि सम्पन्न बनाने में जिनका अथक प्रयत्न तथा विशिष्ट योगदान है, उन सम्मान्य बाबूलालजी फागुल्लके प्रति आभा व्यक्त करते हैं।
अन्तमें उन साधु-सन्तों, गुरुजनों, सम्मान्य विद्वानोंके प्रति आभारी हैं जिन्होंने आदरणीय पण्डितजी के प्रति शुभकामना प्रकट कर जीवन तथा कृतिश्वके सम्बन्धमें यथासमय अपने विचार लेखबद्ध कर भेजनेकी कृपा की सुधी धर्मप्रेमियोंके प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं।
- डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री
मौलिक रचनाएँ
१. जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था - भारतवर्षीय दि० जैन परिषद् पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, १९४५ २. विश्वशान्ति और अपरिग्रहवाद - गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १९४९ ३. जैनतत्त्वमीमांसा - अशोक प्रकाशन मन्दिर, वाराणसी, १९६०, ( पृ० ३१५ )
( संशोधित तथा परिवर्द्धित संस्करण, पृ० ४२२ अशोक प्रकाशन मन्दिर, वाराणसी, १९७८ ) ४. वर्ण, जाति और धर्म - भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी, १९६३
सम्पादित ग्रन्थ
१. प्रमेयरत्नमाला - चौखम्बा संस्कृत सीरिज, बनारस, १९२८ ई०
२. आलापपद्धति - श्री सकल दि० जैन पंचान, नातेपुते ( सोलापुर ), १९३४ ई०
३. धवला खण्ड १, भा० १, पुस्तक १, जैन साहित्य उद्धारक फण्ड, अमरावती, १९३९
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४. धवला खण्ड १, भा० २, पुस्तक ३
१९४१ १९४२
५. धवला खण्ड १, भा० ३, ४, ५ पुस्तक ४,
६. जवघवला १ श्री भारतवर्षीय दि० जैन संघ, चौरासी, मथुरा, १९४४
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१९४८
७. जयघवला २
८. सप्ततिकाप्रकरण (हिन्दी अनुवाद सहित ) आत्मानन्द जैन प्रचारक पुस्तकालय, आगरा, १९४८ ९. धवला, पुस्तक ९ – जैन साहित्य उद्धारक फंड, कार्यालय, अमरावती, १९४९
१०. तत्वार्थ सूत्र ( हिन्दी अनुवाद भाष्य सहित ) गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १९५०,
११. पंचाध्यायी ( हिन्दी अनुवाद ), गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १९५०
१२. महाबन्ध, पुस्तक २, - भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, फरवरी, १९५३
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१३. महाबन्ध, पुस्तक ३,
१९५४
१४. धवला, पुस्तक १० - जैन साहित्य उद्धारक फंड, कार्यालय, अमरावती, १९५४
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१५. धवला, पुस्तक ११
१६. धवला, पुस्तक १२
१९५५ १९५५ १९५५
१७. घवला, पुस्तक १३ -
१८. जयधवला ३ श्री भारतवर्षीय दि० जैन संघ, चौरासी, मथुरा, १९५५
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