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सम्पादकीय : ५
भरपूर रहा है। सामाजिक अवमानना, संघर्ष, यातना, अवपीडन सभी कुछ आपने सहा, परन्तु समाजको सम्यक् दिशाका निर्देश करनेमें आप कभी पीछे नहीं रहे ।
इस अभिनन्दन ग्रन्थकी मूलभूत विशेषता यह है कि यह तथ्यपरक तथा गुणात्मक है । इसका मूल प्रारूप वस्तुवादी समीक्षात्मक रहा है। प्रसंगतः व्यक्तित्व और कर्तुं स्वका सरलतम विवरण भी संयोजित करना पड़ा है। प्रशंसात्मक लेखोंकी भरतीसे तथा जैनधर्म एवं उसकी विभिन्न विधाओंपर विविध विद्वानोंके लेखोंके आकलनसे इस ग्रन्थको मुक्त रखा गया है। दूसरे शब्दोंमें ग्रन्थका कलेवर बढ़ानेकी दृष्टिसे हमने किसी प्रकारकी सामग्रीका संकलन नहीं किया। आदरणीय पण्डितजीके अद्यावधि प्रकाशित तथा अप्रकाशित लेखोंका ही मुख्य रूपसे संकलन किया गया है। उनके व्यक्तित्वकी सम्पूर्ण छविको अंकित करने हेतु उनका जीवनपरिचय, भेंट-वार्ता तथा रेखा-चित्रका समावेश किया गया है । " कृतित्व समीक्षा " के अन्तर्गत पण्डितजी की मौलिक, सम्पादित एवं अनूदित कृतियों के सम्बन्धमें विभिन्न विद्वानोंके समीक्षात्मक लेख दिये गये हैं ।
ग्रन्थ के अन्तर्गत संयोजित विषयवार प्रत्येक इकाईको हमने एक स्वतन्त्र खण्डके रूपमें प्रस्तुत किया है । अतः यह ग्रन्थ पाँच खण्डों में विभाजित है । प्रथम खण्डमें इस देश के विभिन्न क्षेत्रोंमें कार्यरत समाजसेवियों, सहपाठियों, मित्रों, हितैषियों, धर्मप्रेमियों, शिष्यों तथा भक्तोंकी स्नेहासिक्त साधु-शुभ भावना, शुभ कामना, श्रद्धा भावना एवं संस्मरणोंका संकलन किया गया है । यद्यपि हम व्यक्तिगत पत्र लिखकर आदरणीय पण्डितजी के सम्पर्क में आने वाले सभी व्यक्तियोंसे सम्पर्क स्थापित नहीं कर सके हैं, क्योंकि पहले हमारी परिकल्पनामें यह प्रारूप नहीं था । अनन्तर रूप-रेखा बननेके पश्चात् समयाभावके कारण न तो हम सभी विद्वानोंसे लम्बे समयतक पत्राचार कर पाये और न पण्डितजीके जीवनसे सम्बन्धित पूरा विवरण आकलित कर सके हैं । कम समय और सीमित साधनोंमें हम जैसा जो कुछ कर पाये हैं, वह पाठकोंके सम्मुख है । सुधी पाठक ही इसका समुचित मूल्यांकन कर सकेंगे।
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द्वितीय खण्डमें जीवन-परिचय भेंटवार्ता तथा रेखाचित्र आकलित हैं। से व्यक्तित्वका एक चित्र उभारनेका प्रयत्न किया गया है। वर्तमान साहित्य में कृतित्व अपूर्ण माना जाता है। अतः विभिन्न आयाम में व्यक्तित्व तथा कृतित्वका के रूपमें संयोजित किया गया है।
तृतीय लण्ड में आदरणीय पण्डितजीका व्यक्तित्व उभर कर सामने आया है। विभिन्न विद्वानों तथा शुभचिन्तकों द्वारा लिखे संस्मरणात्मक लेख तथा जीवनकी घटनाओंका समावेश किया है।
इन विविध विधाओंके माध्यम व्यक्तिके व्यक्तित्वके बिना अखण्ड परिचय सम्पूर्ण ग्रन्थ
चतुर्थखण्ड में पण्डितजीके पच्चीस लेखोंका संकलन है। इसमें धर्म और दर्शनसे सम्बन्धित कई महत्व पूर्ण लेख संकलित हैं । कुछ लेखोंसे तो विद्वत् जगत् भी अनभिज्ञ हैं उदाहरण के लिए, "भावमन और द्रव्यमन " एक ऐसा लेख है जो लगभग अर्द्ध शताब्दी पूर्व "शान्ति-सिन्धु " में प्रकाशित हुआ था। सभी लेख गम्भीर तथा मर्म पूर्ण हैं। भाषा सरल तथा बोधगम्य है वर्षों पूर्व लिखे गये ये लेख आज भी ताजे हैं। इनको पढ़कर सामान्य पाठक भी स्फूर्तिका अनुभव कर सकता है। इतना ही नहीं, इतिहास तथा पुरातत्त्व" विषयक लेखोंमें कई नवीन तथा शोधपूर्ण हैं जो नई दृष्टि प्रदान करते हैं । अनुसन्धान तथा शोधपरक लेखोंकी अपनी विशेषता है।
पंचम खण्डमें आदरणीय पण्डितजीकी मौलिक सम्पादित तथा अनूदित कृतियों पर विभिन्न विद्वानोंके समीक्षात्मक लेख है। इन लेखोंसे जहां पण्डितजीको साहित्य साधनाका बोध होता है वहीं विषयका परिचय
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