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ग्रथों में 'दानचितामणी' पदवी से विभूषित किया गया परिस्थिती में जैन नारियों ने जो महत्वपूर्ण कार्य किए है। विष्णूवर्धन राजा की रानी शांतल देवी ने मन् उनका मूल्य बढ़ जाता है। उन्हें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र 1123 में श्रवणबेलगोल में भगवान जिनेन्द्र की में प्रगति करने के अवसर प्राप्त होना यह भगवान विशालकाय प्रतिमा स्थापित की थी। सन् 1131 में महावीर के द्वारा स्त्री मुक्ति की घोषणा के कारण ही सल्लेखना व्रत का पालन कर शरीर-त्याग किया था। संभव हो सका, यदि ऐसा कहा जाए तो अतिशयोक्ति
नहीं होगी। जिस युग में स्त्रियाँ वेद या धार्मिक साध्वी साहित्य क्षेत्र में कार्य :-अनेक जैन नारियो वेश धारण करके मुक्ति-मार्ग पर नहीं चल सकती ने लेखिका और कवियित्री के रूप में साहित्य जगत में थी। उसे सामान्य क्रान्ति ही कही जा सकती है। स्वप्रसिद्धि प्राप्त की है। सन 1566 में कवियित्री 'रणमति' नभ और
तन्त्रता और समानता प्राप्त करने के लिए सैकड़ों वर्ष ने 'यशोधर काव्य' नामका काव्य लिखा । आयिका स्त्रियों को संघर्ष करना पड़ा है। परन्तु जैन धर्म के रत्नमती की 'समकितरास' यह हिन्दी-गुजराती मिश्रित मनीषियों ने बहत पहने ही स्त्री-स्वातंत्र्य की घोषणा काव्य-रचना उपलब्ध है। महाकवियित्री रत्न ने अपनी
कर दी थी। यह जैन धर्म का स्त्री-पुरुष को अलग न
का अमरकृति अजितनाथ पुराण की रचना दान चितामणी मानने का दष्टिकोण अर्थात दोनों को प्रत्येक क्षेत्र में अतिमब्बे के सहकार्य से ही ई.स.993 में पूर्ण की थी। कार्य करने के अवसर प्रदान करना विशेष उल्लेखनीय श्वेताम्बर साहित्य में चारदत्त-चरित्र लिखने वाली पद्मश्री, कनकावती-आख्यान लिखने वाली हेमश्री महिलाएँ प्रसिद्ध है । अनुलक्ष्मी, अवन्ती, सुन्दरी, माधवी
इस प्रकार प्राचीन काल में जैन महिलाएं प्रत्येक आदि विदुषियाँ प्राकृत भाषा में लिखने वाली प्रसिद्ध
क्षेत्र में अग्रसर थी। परन्तु मध्य युग में विदेशी आक्रकवियित्रीयाँ है। उनकी रचनाएँ प्रेम, संगीत, आनंद,
मणों के कारण स्त्रियों को सुरक्षित रखने के नाम व्यथा, आशा-निराशा । जिनेन्द्र भक्ति आदि गणों से पर समाज ने स्त्रियों पर अनेक बन्धन लगाए । इसका युक्त है।
प्रभाव जैन महिलाओं पर भी पड़ा। परन्तु भगवान
महावीर को स्त्री-मुक्ति की घोषणा के कारणं ऐसी इसके अलावा नत्य, गायन, चित्रकला, शिल्पकला परिस्थितियों में भी अनेक जैन महिलाओं ने कार्य किए आदि क्षेत्रों में जैन महिलाओं ने असामान्य प्रगति की है। इसका उल्लेख ऊपर आ चूका है। फिर भी उनकी है । प्राचीन ऐतिहासिक काल में जैन नारी ने जीवन के स्वतन्त्रता और स्वविकास में बाधा अवश्य आई। सभी क्षेत्रों में अपना सहयोग दिया है। समाज उसे इसी कारण शिक्षा, धर्म-संस्कार तत्वज्ञान आदि में नारी सम्मान की दष्टी से देखता था। समाज ने नारी को बहुत पीछे रही। एक बार लगे हए बन्धन आजादी उसकी प्रगति के लिए सब सुविधाएँ दी थी। गृहस्थ मिलने पर भी टूट न सके । धर्म पालन करते हुए उसकी प्रगति अपने पुत्र-पुत्रियों को सुसंस्कारित करना, राजकार्य, समाजकार्य, धार्मिक आज फिर से सारे जगत में नारी जागृति की लहर कार्य में सक्रिय सहयोग देना वह अपना कर्तव्य समझती आई है। महिला-वर्ष का आयोजन इसी जाग्रतिका थीं।
परिचायक है। इसका प्रभाव जैन महिलाओं पर भी
पड़ा है । इस वैज्ञानिक युग में जैन महिलाओं ने अनेक इस प्रकार भगवान महावीर या उनके पूर्व की क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के सामाजिक परिस्थिति यदि देखी जाएँ तो उस प्रतिकूल माध्यम से श्रीमती रमा जैन ने साहित्य और धार्मिक
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