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बनीं। इस प्रकार जब अन्य धर्म मनीषियों ने स्त्रीयों भगवान जिनेन्द्र का नाम स्मरण करते उसने इहलोक को पुरुषों का अनुवति माना उस समय भगवान महावीर की यात्रा समाप्त की। ने स्त्रियों की स्वतंत्रता और उनके समान अधिकार की घोषणा की। आज भी भारत में हजारों साध्वियाँ
विजय नगर की सरदार चंपा की कन्या रानी आयिका का कठिन ब्रत धारण कर आत्मकल्याण के
भैरवदेवी ने राज्य नष्ट होने के बाद अपना स्वतंत्र राज्य साथ-साथ महिलाओं में आत्मिक जागृती का कार्य कर स्थापित किया था और वहाँ मातृसत्ताक पद्धति से कई
बरसों तक राज्य चलाया था। नालजकोंड देशके अधि
कारी नागार्जन की मत्यु के बाद कदंबराज ने उनकी सामाजिक कार्य और जैन नारी :--जैन देवी वीरांगना जक्कमव के कंधो पर राज्यकार्य भार शास्त्रों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि महावीर के की जिम्मेदारी रखी । आलेशो में इसे 'युद्ध-शक्ति मुक्ता समय में और उसके पूर्व महिलाओं को आजन्म अवि- और 'जिनेंद्र शासन भक्ता' कहा गया है। अपने अंत बाहित रहकर समाजसेवा और आत्मकल्याण करने की काल तक उसने राज्य कार्य भार की जिम्मेदारी अनुज्ञा थी। आदिपुराण पर्व 18 श्लोक 76 के अनुसार संभाली। इस काल में पुरुषों के साथ ही कन्याओं पर भी विविध संस्कार किये जाते थे। राज्य परिवार से संबंधित गंग राजवंश की अनेक नारियों ने राज्यकार्य भार महिलाओं को विशेषाधिकार प्राप्त थे। कन्या पिता की ___ की जिम्मेदारी संभालकर अनेक जिन मंदिर व तालाब संपत्ति में से दान भी कर सकती थी। उदाहरण के बनाए। चम्पला रानी का नाम जिन मंदिर निर्मिती लिए सुलोचना ने अपनी कौमार्यावस्था में रत्नमयी जिन और जैन धर्म की प्रभावना के लिए अधिक प्रसिद्ध प्रतिमा की निर्मिती की थी और उन प्रतिमाओं है। उसी प्रकार श्रवण बेल गोल शिला लेख क्र. 496 को प्रतिष्ठा करने के लिए बड़े ढंग से प्रजीभिषेक से पता चलता है कि णिक्कमब्वे शुभचन्द्र देव की शिष्या विधि का भी आयोजन किया था।
थी। योग्यता और कुशलता से राज्यकार्यभार करने
के साथ ही धर्म प्रचार के लिए इन्होंने अनेक जैन ___कुछ जैन महिलाएं राज्य व्यवहार में पूर्ण निपुण प्रतिमाओं की स्थापना की थी। थी साथ में उन्होंने राज्य की रक्षा के लिए युद्ध में प्रत्यक्ष भाग लिया था। इसके लिए अनेक ऐतिहासिक जैन नारियों के द्वारा शिल्प व मंदिरों का निर्माण उदाहरण दिए जा सकते है। पंजिरि देश के प्रसिद्ध किया गया। इसका उल्लेख शिलालेखों में मिलता है। सविध राजा की कन्या अर्धांगिनी ने खारवेल राजा के कलिंगपति राजा खारवेल की रानी ने कुमारी पर्वत पर विरुद्ध किये गये आक्रमण में उसे सहयोग दिया था। जैन गुफाओं का निर्माण किया था। सोरे की राजा की इतना ही नहीं उसने इस युद्ध के लिए महिलाओं की पत्नी ने अपने पति का रोग हटाने के लिए एक मंदिर स्वतंत्र सेना भी खड़ी की थी। युद्ध में राजा खारवेल व तालाब का निर्माण किया था । यह मंदिर आज भी के विजय पाने पर खारवेल राजा के साथ उसका 'मुक्तकनेरे' नाम से प्रसिद्ध है। आहवमल्ल की राजा के विवाह हुआ था। गंग घराने के सरदार नाम की लड़की सेनापति मल्लम की कन्या 'अंतिमबब्वे' दानशर व
और राजा विखर लोक विद्याधर की पत्नी सामिमबने जैन धर्म पर श्रद्धा रखने वाली थी। उसने चाँदी और यत की सभी कलाओं में पारंगत थी। सामिमबने के सोने की अनेक जैन प्रतिमाओं का निर्माण कराया था। मर्मस्थल पर बाण लगने से उसे मूर्छा आ गई और उसने लाखों रुपयों का दान दिया था। उसे अनेक
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