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"भाव पुष्पांजलि"
कर दिया आलोक से जगमग ये सारा विश्व ही जब दीपकों की ज्योति से क्या आरती तेरी उतारू । चाहता हूँ में तुम्हारे चरण पथ में, है, प्रभू जी, हर चरण पर निज हृदय की भाव पुष्पांजलि सवारू ।
विश्व के हो देव प्रभु महिमा कहूँ कैसे तुम्हारी, जगत की उत्कृष्टता ना छू सकी सीमा तुम्हारी, क्रोध माया मान मत्सर लोभ, सब ही हैं पराजित,
काम जैसे वीर ने भी ध्वंस हो जय की तुम्हारी,
नादा कर अज्ञान का अधेर पाया ज्ञान अनुपम, जगमगाया विश्व, उसको दीप मैं कैसे उजारू । चाहता हूँ मैं तुम्हारे चरण पथ में, हे, प्रभू जी, हर चरण पर निज हृदय का भाव पुष्पांजलि सवारू ||१||
तोड़ कर दुःखदेय बंधन विश्व के तुमने प्रभुजी, कर्म आठों को किया चकचूर ज्यों रिपु क्रूर हैं वे, थे अनन्ते काल से जो मोह और ममता के बंधन,
काट दीने क्षणक में तुमने ज्यों कच्चे सूत हैं वे,
दुःख भरा जग छोड़ कर प्रभु जा रहे सुखगार को, तुम छोड़ कर जिसको चले कैसे वहाँ जीवन गुजारू । चाहता हूँ मैं तुम्हारे चरण पथ में है, प्रभूजी, हर चरण पर निज हृदय की भाव पुष्पांजलि सवारू ॥२॥
जा रहे हो तुम प्रभू, कैसे रहूँ मैं ? यह बताओ, देख कर यह दुःख भरा जग, हूक उठती है हृदय में,
किन्तु यह संतोष मुझको, जगत के उद्धार कर्त्ता !
ज्योति जो तुमने दिखाई, छा रही है अब हृदय में,
है अलौकिक और अनुपम ज्ञान का आलोक मन में, जगमगाती जा रही रत्नत्रयी निधि को सँभालू । चाहता हूँ में तुम्हारे चरण पथ में हे प्रभूजी, हर चरण पर निज हृदय की भाव पुष्पांजलि सँवारू ॥३॥
कामना कुछ है नहीं, बस प्रार्थना इतनी प्रभूजी, शक्ति का ऐसा उदय हो जाय अब मेरे हृदय में. चल सकू हर कदम व कदम संग तेरे चरण पथ के,
हो अमिट चिंतन निराकुल-शांति का मेरे हृदय में,
तोड़ जग के नेह बंधन चल पड़ू सुखधाम को, जहाँ पा चत्तष्ठय मैं अनन्तानन्त युग सुख को सँभालू । चाहता हूँ मैं तुम्हारे चरण पथ पर है, प्रभुजी, हर चरण पर निज हृदय की भाव पुष्पांजलि सवारू ॥४॥
[] शान्तीलाल जैन "मधुकर"
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