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महाशक्ति का स्रोत
तुममें भरा है तुम्हीं से तरंगित उदित
यह धरा है कहा, वीर ने आपको
जान जाओ सरल पंथ, वसु-कर्म की
निर्जरा है
मनोयोग द्वारा सुनो वीर वाणी
स्वयम् का अहम् यदि मनुज
जान जाये सफल विश्व उसको सहज ।
मान जाये मनोयोग द्वारा सुनें
वीर वाणी यही मान टिकेगा जगत
छान आये
कल्याणकुमार जैन "शशि"
स्वयम् में सिमट, आत्म को
यदि निहारा प्रदर्शित मिलेगा यहाँ
विश्व सारा कहा वीर ने, भटकनें
तब मिटेंगी चलें यदि इसी मार्ग पर
ज्ञान द्वारा
समझाना पड़ेगा
सदाचार क्या है
समझना पड़ेगा
अहंकार क्या है
अनेकान्त का भेद
विज्ञान जाने
तिरस्कार क्या है
पुरस्कार क्या है
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