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उन परमाणुओं का तौल चौथाई रत्ती भी न बैठेगा । परमाणु की सूक्ष्मता का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हाइड्रोजन के 20 करोड़ परमाणु यदि एक पंक्ति में रख दिये जायें तो पंक्ति की लम्बाई केवल 1 इंच होगी और 40 हजार शंख परमातुओं का तौल केवल 1 खसखस के दाने के बराबर होगा । इतना छोटा होने पर भी यह अन्दर से पोला है । जितने स्थान में परमाणु की नाभि स्थित है उससे 1 लाख गुना दूरी पर इलेक्ट्रोन चक्कर लगा रहे हैं। यूं समझिये कि जैसे एक 30 फीट व्यास के गोले के केन्द्र में एक आलपिन की नोक रखी हो । ठीक उसी प्रकार परमाणु के मध्य में उसकी नाभि स्थित है । नाभि ऐसे पदार्थ से बनी है जिसके 1 घन सेंटीमीटर की तौल 24 करोड़ टन है जबकि 1 घन सेंटीमीटर सोने की तौल केवल डेढ़ तोला ही होती है । परमाणुओं के अन्दर की पोल को देखकर ही एक वैज्ञानिक ने कहा था कि "मनुष्य का शरीर जिन परमाणुओं से बना है उन परमाणुओं की अन्दर की पोल को यदि समाप्त कर दिया जाय और सब इलेक्ट्रोन प्रोटोन एक स्थान पर एकत्रित कर लिये जायें तो मनुष्य का शरीर केवल इतना सा रह जायेगा कि नंगी आँख से तो नहीं किन्तु शायद सूक्ष्मदर्शी लेंस से दिखाई दे जाय ।" सोचिये तो सही, इस खोखलेपन पर भी यह भोला मनुष्य अपने रूप और शक्ति के अहंकार में चूर है ।
जब परमाणुओं के बीच की पोल निकल जाती है और केवल नाभियाँ ही एक स्थान पर एकत्रित हो जाती हैं तो उस भारी पदार्थ की उत्पत्ति होती है जो लुब्धक ( सीरियस) तारे के प्रकाशहीन साथी तारे में पाया जाता है और जो प्लैटिनम ने 2000 गुना अधिक भारी है, इसे 'न्युक्लियर मैटर' कहते हैं और भारतीय भाषा में 'वज्र' कह सकते हैं। इस प्रकाशहीन तारे का व्यास सूर्य के व्यास का 30 वां भाग है किन्तु इसकी तौल सूर्य की तौल का तीन-चौथाई है। हिसाब लगाने से पता चलता है कि जिस पदार्थ का यह बना हुआ है
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यदि आप उसका इतना बड़ा टुकड़ा तोड़ लें जो आपकी जाकट की जेब में समा जाय तो उसका वजन 1 टन से भी अधिक होगा ।
जो धनुष भगवान राम ने तोड़ा था, बाल्मीकि रामायण के अनुसार वह दधीचि ऋषि की वज्रमयी हड्डियों का बना हुआ था और केवल 10 फीट लम्बा था । सम्भवत: इसी कारण वह इतना भारी था कि रावण जैसे महायोद्वा भी उसे हिला न सके ।
परमाणु की नाभि के चारों ओर चक्कर काटने वाले इलेक्ट्रोन 1 इंच लम्बाई में 50 खरब समा जाते. हैं और 8 करोड़ शंख इलेक्ट्रोनों की तौल केवल पोस्त के दाने के बराबर होती है । यह इलेक्ट्रोन 1300 मील प्रति सेकंड की गति से घूमते रहते हैं, जबकि बन्दूक की गोली 1 सेकिड में आधा मील ही जाती है ।
परमाणुओं की नाभि में न केवल प्रोटोन ही पाये जाते हैं अपितु वहां न्यूट्रोन नाम का एक और कण भी होता है | न्यूट्रोन नाम के कण, उदासीन कण होने के कारण, परमाणुओं के वक्ष को भेदने में बड़े कुशल होते हैं। इनके सम्बन्ध में बिहारी की यह उक्ति ठीक बैठती है कि 'देखन में छोटे लगें, करें घाव गम्भीर ।' कई-कई फीट मोटे शीशे की चादरों के पार निकल जाने की इनमें क्षमता है, जिन्हें एक्स किरण भी नहीं पार कर पातीं । इन्हीं न्यूट्रोन कणों की सहायता से एटम बम का विस्फोट होता है। जिस वायु से हम सांस लेते हैं उसमें भी न्यूट्रोन विद्यमान हैं। वायु के 1 अरब परमाणुओं में केवल 5 न्यूट्रोन कण हैं । यदि मनुष्य के शरीर में यूरेनियम ( वह धातु जिसका एटम बम बनता है) होता तो सांस के साथ जानेवाले यह न्यूट्रोन हमारे शरीर का उसी प्रकार विस्फोट कर देते, जैसे एटम बम में होता है । परमपिता परमात्मा की लीला देखिये कि उसने मनुष्य का शरीर बनाने में उस मिट्टी का प्रयोग किया है जिसमें लोहा, तांबा आदि धातुएं तो थीं, किन्तु यूरेनियम नहीं था ।
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