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________________ "अणुरणोयान महतोमहीयान्" यदि आप जल-स्कंध को तोड़ने का प्रयत्न करेंगे तो जल, जल नहीं रहेगा । जल-स्कंध हाइड्रोजन और (इस धरा पर जो सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तु हमें दृष्टि ऑक्सीजन के परमाणुओं से मिलकर बना है, यह गोचर होती है उससे भी और अधिक सूक्ष्म वस्तुओं का परमाणु पृथक् हो जावेंगे। अस्तित्व है और जो बड़े-से-बड़ा भूखण्ड दृष्टिगोचर होता है उससे भी और अधिक बड़े भूखण्ड मौजूद हैं ।) तत्वार्थ अधिगम सूत्र के अध्याय 5 का 11वां सूत्र ' प्रो0 जी0 आर0 जैन है "नाणोः" जिसका अर्थ है कि अणु से छोटी और कोई वस्तु नहीं है और आगे चलकर सूत्र 27 में कहा अब हम हाइड्रोजन के परमाणु का विशेष वर्णन गया है "भेदादणः" जिसका अर्थ है कि जड़ वस्तुओं के करते हैं। परमाणु, चाहे वह किसी भी पदार्थ का हो, अनन्तवें भाग को अगु कहते हैं । उसका और विखण्डन पत्थर की गेंद की तरह ठोस नहीं है, वह अन्दर से नहीं हो सकता । जिसे हम साइन्स की भाषा में एटम खोखला है। परमाणु के केन्द्र में एक बीज है जिसे कहते हैं वह जैन दर्शन का अरणु नहीं है, परन्तु हम नाभि (न्युक्लीयस) कहते हैं और उसके चारों ओर आपको पहले आधुनिक एटम का ही वृत्तान्त सुनाते हैं- पर्याप्त दूरी पर ऋण-विद्युत (इलेक्ट्रोन) के कण ठीक परमाणु और लोक ( ATOM AND THE UNIVERCE ) __ यदि हम जल की एक बूंद लें और उसके खण्ड उसी प्रकार चक्कर काटते रहते हैं जिस प्रकार सूर्य के करते चले जायें तो सबसे अन्तिम छोटे से छोटा खण्ड चारों ओर नियत परिधियों में ग्रह चक्कर लगाते हैं जिसमें जल के सभी गुण विद्यमान हों उस छोटे जल- अथवा जिस प्रकार भगवान कृष्ण की रासलीला में कण को जल स्कंध कहते हैं । तीस ग्राम जल में इन गोपियाँ कृष्ण के चारों ओर चक्कर लगाया करती थीं। स्कंधों की संख्या इतनी अधिक है कि यदि संसार के यह परमारण संसार के प्रत्येक पदार्थ में असीम संख्या में समस्त प्राणी-स्त्री पुरुष, बाल और वृद्ध-उन स्कंधों को व्याप्त हैं; उदाहरणस्वरूप समुद्र के जल की एक बूंद गिनना प्रारम्भ करदें और रात-दिन गिनते ही रहें और में स्वर्ण के 50 अरब परमाणु पाये जाते हैं। यह बात बहुत जल्दी-जल्दी 1 से किड में 5 की गति से गिनते रहें सुनकर तुम तुरन्त बाल्टी लेकर बम्बई की ओर न दौड़ तो स्कंधों की पूरी संख्या को गिनने में 40 लाख वर्ष पड़ना, क्योंकि परमारणु बहुत ही सूक्ष्म वस्तु है। समुद्र लगेंगे । इससे स्कंधों की सूक्ष्मता का भी आभास मिलता के 60 टन जल में से यदि सोने के सभी परमाणु एकत्रित करने में आप सफल भी हो गये तो, तब भी २७३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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