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________________ अप्रकाशित शोधपत्र एवं निबन्ध लिखने तथा भेजने की विश्वविद्यालय, जैन समाज के प्रमुख प्रतिनिधियों कृपा कर, कृतार्थ किया। उनके कारण ही यह ग्रन्थ सर्वश्री मानिकचन्द्र गंगवाल, निर्मल अपने वर्तमान स्वरूप को ग्रहण कर सका है। मानिकचन्द जैन, मिश्रीलाल पाटनी, रामजीत जैन, ज्ञानचन्द्र जैन, देवेन्द्र कुमार कोठारी, पदमचन्द्र जैन ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु साधन जुटाने में एवं रामचन्द्र जैन आदि महानुभावों का भी आभारी श्री सरदार सिंह जी चौरड़िया का महत्वपूर्ण योगदान है जिन्होंने व्याख्यानमाला के आयोजन एव ग्रन्थ के है। उनके सहयोग से ही इस ग्रन्थ के प्रकाशनार्थ "श्री प्रकाशन में उल्लेखनीय सहयोग प्रदान कर कृतार्थ 2500वां भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव स्मारक किया। व्याख्यानमाला के आयोजन में वित्त अधिकारी न्यास" से एक हजार रुपयों का आर्थिक अनुदान भी ! श्री आर. के पितले, पुस्तकालयाध्यक्ष श्री पी. के. बैनर्जी, प्राप्त हो सका। विश्वविद्यालय समस्त विज्ञापनदाताओं विकास विभाग के कार्यालय अधीक्षक श्री एल. एन. का भी आभारी है, जिन्होंने आ संस्थानों के विज्ञापन शर्मा तथा लिपिक श्री आर. के. गुप्ता; कुलपति के उपलब्ध कराकर, ग्रन्थ प्रकाशनार्थ साधन संग्रहण में सचिव श्री पी. सी. जैन, विश्वविद्यालय यंत्री श्री के. सहायता की। एल. महाजन ने भी विविध दायित्वों का अत्यधिक लगन्पूर्वक निर्वाह कर सइयोग प्रदान किया नदर्थ ये ग्रन्य की साज-सज्जा की दृष्टि से ग्रन्थ का कलेवर । सभी धन्यवाद के पात्र हैं। तथा वर्तमान स्वरूप सम्पादक श्री रवीन्द्र मालव, सदस्य महासभा एवं विद्या परिषद, प्रो. विश्वमित्र वासवाणी, विश्वविद्यालय की ओर से मैं उन सभी सहविभागाध्यक्ष, शासकीय ललित कला महाविद्यालय, योगियों का भी हार्दिक आभारी हूँ जिन्होंने इस प्रकाशन तथा मुद्रक-साधना प्रेस के सर्वश्री नारायणसिंह वर्मा को सुलभ बनाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान एवं लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, तथा उनके सहयोगीयों किया। उन सभी के सदप्रयासों के कारण ही आज के अथक परिश्रम एवं लगन का ही परिणाम हैं। इस ग्रन्थ का प्रकाशन सम्भव हो सका है। मेरा विश्वविद्यालय के विकास विभाग में लिपिक श्री भास्कर किया विश्वास है कि जिन आकांक्षाओं के साथ इस ग्रन्थ का विश्वनाथ जोशी ने ग्रन्थ के प्रकाशन सम्बन्धी कार्याल प्रकाशन किया गया है, उनकी पूर्ति में यह पूर्ण सफल यीन दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वहन कर उल्लेखनीय होगा। सहयोग दिया है । इसके लिये मैं उन्हें साधुवाद देता है। विश्व मैत्री दिबस (क्षमावाणी पर्व) बीर निर्वाण सं. 2503 दिनांक 28 सितम्बर 77 घनश्याम गौतम उप कुलसचिव (विकास एवं प्रशासन) जीव जी विश्वविद्यालय, ग्वालियर xxiv Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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