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चालुक्य-आधिपत्य के उत्तर काल में अनेक जैन मन्दिरों गुजरात-एक महत्वपूर्ण जैन कला केन्द्र का निर्माण हुआ। लकगुडी, जिला धारवाड़ में बारहवीं शताब्दी का पार्श्वनाथ का मन्दिर है । इस मन्दिर
___ गुजरात में जैन धर्म का प्रभाव बहुत ही गहरा
और प्राचीन है। तलाजा और गिरनार का उल्लेख तो में तथा अन्य मन्दिरों में अनेक सुन्दर जिन प्रतिमाएँ हैं । बेलगाँव में कमल बस्ती नाम का एक जैन मन्दिर
मैंने पहले ही किया है इसके बाद बल्लभी या बल्लभीहै। इस देवालय की छतों की कला सौन्दर्य बहुत ही
पुर एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र रहा था। महावीर के निर्वाण प्रेषणीय है । कानरा जिले के भटकल गांव में और
के पश्चात् लगभग 980 वर्ष के उपरान्त यहाँ देवधिमंगलौर के पास मुडबिनद्री स्थलों पर जैन मंदिरों की
गणी क्षमा-श्रमण के नेतत्व में एक जैनमूनि सम्मेलन ऐसी विशिष्ट रचना है जिसे देखकर नेपाली स्थापत्य
हुआ था, जिसमें श्वेताम्बर जैन आगम का संकलन का आभास होता है। भटकल के मन्दिर के सामने एक
किया गया । श्वेताम्बर परम्परा इन आगम ग्रन्थों को ऊँचा स्तम्भ है जिन पर तीर्थ करों की चहमख प्रतिमाएँ।
प्रमाणभूत मानती है । बल्लभी में जैन बस्ती के अवशेष उत्कीर्ण हैं।
और कांस्य प्रतिमाएँ मिली हैं।
तामिल देश में जैन प्रभाव
गुजरात में चालुक्यों के अभिपत्य काल में कुमारतामिलनाडु राज्य के पदकोटाई जिले में कई
पाल राजा ने तारंगा में अजितनाथ का मंदिर प्राचीन जन गुफाऐं मिली हैं । इन गुफाओं में जैन
बनवाया, जो एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ है, यह जिला मुनियों के लिए पत्थरों पर तराशी हुई शय्याएँ मिलती
मेहसाना में सिद्धपुर के निकट है । सौराष्ट्र में गिरनार हैं और यहां पाये गये ब्राह्मणी लेख ईसा पूर्व पहली
पर्वत पर और शत्रुजय पहाड़ी पर अनेक जैन मंदिर शताब्दी के हैं। तामिलनाडु में और दूसरे जैन स्था त्य
स्थित हैं । ये दोनों स्थान महत्वपूर्ण जैन-तीर्थ माने कला के केन्द्र स्थान हैं किन्तु इनमें उल्लेखनीय हैं
जाते है। गिरनार में नेमिनाथ के भव्यमन्दिर का सित्तन्नवासल की जैन गुफा में अजन्ता शैली के 7 वीं
जीर्णोद्धार 1278 ई. में किया गया था। शत्रुजय शताब्दी के भित्ति चित्र सुरक्षित हैं। दूसरा महत्वपूर्ण
पर्वत पर; जिसको पालिताना भी कहते हैं, ग्यारह स्थल कांचीपुरम, जिसे जिन-कांची भी करते हैं। प्राकारों के बीच 500 जैन मन्दिर हैं । इनमें से 640 ई. में हयूएन त्संग ने लिखा है कि कांची में कुछ तो 11 वीं शताब्दी के हैं । परन्तु बहुत से मन्दिर जैनों की एक बड़ी बस्ती थी। कांचीपुरम की इस बस्ती 16 वीं शताब्दी के बाद के हैं । 1618 ई. में यहाँ को तिरुपति कुण्डम् भी कहते हैं। यहाँ चोल राजाओं एक 3
एक सुन्दर शिखर युक्त दो मंजिला मन्दिर अहमदाबाद के आधिपत्य काल में चन्द्रप्रभ-वर्धमान स्वामी और
के एक श्रेष्ठी ने बनवाया । इस मन्दिर के स्तम्भ त्रिकूट बस्ती नाम के जैन मन्दिरों का परिवर्धन किया ।
शीर्ष पर नर्तक और वादक वन्द उत्कीर्ण हैं । यहाँ गया। यहाँ संगीत मंडप नाम का एक भाग विजया
19 वीं शताब्दी में भी अहमदाबाद के एक नगर नगर राजाओं के आधिपत्य में चित्रांकित किया गया।
थेष्ठी ने एक मन्दिर बनवाया था जिसने पांच तीर्थों
का मानचित्र भी उत्कीर्ण कराया था। इस मंडप और मुखमंडल की छतों पर महावीर स्वामी के समवरण के प्रसंग चित्रित किए गये हैं इनके साथ अलाकिक आबू ही ऋषभदेव और नेमिनाथ आदि तीर्थकरों के जीवन राजस्थान के आबू पर्वत के अत्यन्त प्रसंग चित्रित किये गये हैं और हर एक प्रसंग के नीचे सरम्य स्थल पर चार प्रमुख देवालय हैं । उचित लेख भी है।
इनमें विमलशा और तेजपाल ने क्रमशः 1032 ई.
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