________________
नाचना कुथारा, तिगोवा आदि स्थलों पर हिन्दू मंदिरों अकोटा (प्राचीन अंकोटक) नामक स्थान गुजरात का निर्माण हो रहा था । देवगढ़ के पास अनेक जैन में बड़ौदा के निकट है । यहाँ 1949 में डा. यू. पी. देवालय और उनके अवशेष मौजूद हैं । उनका काल शाह के प्रयत्नों से एक अद्वितीय 68 जैन धातु मूर्तियों गुप्तकालोत्तर 8 या 9वीं शताब्दी का बताया का संग्रह प्रकाश में आया। यहाँ पर अंकोटक-वसति जाता है। यहाँ के अनेक शिल्पों पर गुप्तकाल का नाम का जैन मंदिर रहा होगा । इस संग्रह की कांस्य प्रभाव दिखाई देता है । देवगढ, ललितपूर, चंदेरी, मतियों पर गूप्तशिल्प कला का प्रभाव दिखाई देता चाँदपुर, आदि स्थलों पर सहस्त्रों की संख्या में जैन है। ऋषभनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा और जीवन्त प्रतिमाओं का निर्माण किया गया और तत्कालीन स्वामी की प्रतिमा के ऊपर गुप्तकाल का सौन्दर्य यथार्थ मंदिरों में उनकी प्रतिष्ठापना की गई। इस प्रदेश रूप से दिखाई देता है। यहाँ 7, 8, 9, 10वीं शताब्दी में गुप्तकालीन जैन मंदिर मिलने की संभावना की कांस्य प्रतिमाएँ भी पाई गई हैं, जो बड़ौदा के है। विदिशा से दो जिन प्रतिमाओं पर रामगुप्त संग्रहालय में सुरक्षित हैं । यह मूर्ति संग्रह बड़ौदा का उल्लेख मिला है इसी उपलब्धि पर मेरा यह अनु- संग्रहालय का अलंकार माना जाता है। मान है कि गुप्तकाल में भी जैन देवालय मध्यप्रदेश में बने होंगे।
ऐलोरा स्थित जैन गुफा प्रांगण में एकाश्य मंदिर ( 9वीं,-10वीं शताब्दी)
१६२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org