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________________ स्त्रोतों पर प्रकाश डालता है, जैसे साहित्य, स्थापत्य, कला, तत्वज्ञान, सामाजिक जीवन, धर्माचरण और भारतीय भाषाओं का क्रमिक विकास इत्यादि । इस धर्म के विकास में चेदि कलिंग नृपति खारवेल से कुषाण, गुप्त, चालुक्य, राष्ट्रकूट, चोल, पांड्य, गंग, परमार, चन्देल, यादव, होयसल, विजयनगर आदि अनेक राजवंश नृपतियों और घनिक श्रेष्ठियों तथा श्रावकश्राविकाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है । इतना ही नहीं मुगल सम्राट अकबर के विचारों पर भी जैन मत का प्रभाव पड़ा था । महात्मा गांधीजी की विचारधारा पर भी जैन धर्म और आचार का गहरा प्रभाव दिखाई पड़ता है । प्राचीन भारत में इस धर्म की नींव समण (श्रमण ) नाम से संबंधित किये जानेवाले और एक स्थान से दूसरे स्थान पर अखंड परिभ्रमण करनेवाले अत्यन्त कठिन व्रतधारी साधुओं ने डाली थी । श्रमणों की एक बहुत प्राचीन परंपरा है। प्राचीन जैन और बौद्ध बाङमय में ऐसे श्रमण समुदायों का उल्लेख मिलता है: - "संबहुला नानातिथ्थिया नाना दिठिका नाना रुचिका, नानादिठिनिस्सर्थानस्सिता, " अर्थात् " बहुत बड़ी संख्या में अनेक गुरुओं को माननेवाले, विविध आचार-विचार, विविध योग, प्रवृति के विविध रुचिवाले और विविध दार्शनिक विचारधारा में विश्वास करने वाले ऐसे विविध सम्प्रदाय वाले भारतसमाज की पार्श्वभूमि पर बुद्ध और महाबीर दीपस्तम्भ जैसे दिखाई देते हैं। उन्होंने दीर्घ और गहरा विचार मंथन करके अपनी स्वतन्त्र अनुभूति से नवीन धर्म की नींव डाली । बौद्ध धर्म को माध्यम मार्ग ( मज्जिमा पटिपदा) के रूप में हम सब जानते हैं । जैन मत में उम्र तपस्या अभिप्रेत है। परन्तु ऐसे कठोर तपस्या मार्गी पंथ ने भी कला के Jain Education International क्षेत्र में अत्यन्त महत्व का कार्य किया है, यह एक बड़ा विरोधाभास है । लेकिन वस्तुस्थिति ऐसी है कि एक तरफ श्रमणों ने अपने जीवन में असिधारा जैसे व्रती जीवन का आदर्श सँभाला और साथ ही साथ साहित्य और कलाप्रेमी श्रावक-श्राविकाओं ने अपने स्वाभाविक कला प्रेम से इस धर्म के तत्वज्ञान के साथ-साथ सुसंगत कला साधना भी आरम्भ की। जैन धर्मावलम्बी धनिक श्रेष्ठियों ने स्थापत्य कला में अग्रगण्य माने जाने वाले जिन - देवालय बनाये और भारतीय स्थापत्य कला को समृद्ध बनाया । भगवान महावीर जी की प्रमुख कार्यभूमि बिहार राज्य थी । उनका जन्म वैशाली के निकट कुंडलपुर ग्राम में हुआ था और केवल ज्ञान की प्राप्ति के उपरांत महावीर जी ने मगध देश की राजधानी राजगृह में अंगदेश की राजधानी चम्पा में, विदेह के अन्तर्गत मिथिला में तथा श्रावस्ती में अपने वर्षावास व्यतीत किए । जैन कला का पहला आविष्कार जैन मूर्तिकला का पहला आविष्कार यथार्थ रूप से हमको बिहार में दिखाई देता है। पटना संग्रहालय में रखी एक मस्तकहीन दिगम्बर तीर्थंकर प्रतिमा, जो लोहानीपुर से प्राप्त हुई थी, मौर्य मूर्तिशिल्प की तरह चमकदार पालिशयुक्त है। बिहार में बक्सर के निकट चौसा ग्राम में पाई गई एक शताब्दी ईसा पूर्व की, कुषाणकालीन ऋषभ व पार्श्वनाथ की कांस्य प्रतिमाएँ जैन धातु शिल्प में अत्यन्त प्राचीन मानी जाती हैं । ये दोनों प्रतिमाएँ पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं । ve कलिंग, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र की प्राचीन जैन गुफाएँ मौर्य वर्चस्व के पश्चात् कलिंग देश के चेदि नृपति खारवेल ने ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में जैन धर्मी श्रमणों के लिए कलात्मक गुफा -समूह उत्कीर्ण करके १५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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