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इनकी एक कड़ी के रूप में मध्यप्रदेश शासन द्वारा गठित मुझे प्रसन्नता है कि विश्वविद्यालय की यह कल्पना महावीर निर्वाण महोत्सव समिति के आर्थिक सहयोग आज साकार हो रही है। ग्रन्थ के सम्पादन, सामग्री से इस विश्वविद्यालय द्वारा 6 से 10 नवम्बर 1975 संकलन एवं प्रस्तुतीकरण में बहत अध्ययन और चिन्तन तक भगवान महावीर के 2500 वें महापरिनिर्वाण के से काम लिया गया है, जिसका प्रमाण इसके प्रत्येक अवसर पर एक व्याख्यानमाला आयोजित कर एक लघु पृष्ठ पर मिलता है। सम्पादक ने ग्रन्थ को व्यापक तथा प्रयास किया था, जिसमें अनेकों राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सर्वाङ्गीण स्वरूप प्रदान करने में कुशल बुद्धि का परिचय विद्वानों के व्याख्यान आयोजित किये गये।
दिया है। इस हेतु इस ग्रन्थ के सम्पादक और
जीवाजी विश्वविद्यालय की महासभा के सदस्य व्याख्यानमाला की सफलता से प्रभावित होकर श्री रवीन्द्र मालव बधाई के पात्र हैं, जिनकी तीव्र लगन जब समिति ने इस व्याख्यानमाला में हुए व्याख्यानों एवं कर्तव्यनिष्ठा तथा अथक परिश्रम एवं सहयोग से तथा पठित शोधपत्रों के प्रकाशन की योजना निर्मित की विश्वविद्यालय अपने इन प्रयासों को मूर्त रूप प्रदान कर तब यह कार्य काफी कठिन प्रतीत होता था, तथापि सका । विश्वविद्यालय के इस प्रयास को गतिशील बनाने विश्वविद्यालय ने इस प्रयास को आगे बढ़ाते हुए इन के मूल में उनका महत्वपूर्ण योगदान है । मुझे इस बात व्याख्यानों को प्रकाशित करने का निश्चय किया।साथ की भी प्रसन्नता है कि विश्वविद्यालय के विकास एवं ही यह भी निश्चय किया कि इसमें इन व्याख्यानों के प्रकाशन विभाग ने भी इस कार्य में पूर्ण रुचि लेकर अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर, जिन पर किन्हीं ग्रन्थ के प्रकाशन में सक्रिय सहयोग दिया। कारणों से व्याख्यान आयोजित नहीं हो सके थे, राष्ट्रीय जिस कल्पना को लेकर इस स्मृति-ग्रन्थ के प्रकाशन ख्यातिप्राप्त विद्वानों तथा प्रतिष्ठित लेखको आदि से का विचार निर्मित हआ था, यह ग्रन्थ उससे भी कहीं शोधपत्र एवं निबन्ध प्राप्त कर, उनको भी सम्मिलित कर
उत्तम स्वरूप में प्रकाशित हो रहा है यह अत्याधिक हर्ष एक ऐसे स्मृति-ग्रन्थ का प्रकाशन किया जावे जिसमें
__ का विषय है। मेरा विश्वास है कि इसमें प्रकाशित सामग्री विविध क्षेत्रों में तीर्थकर महावीर एवं जैन संस्कृति की से जैन दर्शन, साहित्य एवं संस्कृति के अनेकों अज्ञात तथ्य देन एव उपलब्धियों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण विषयो पर उजागर होंगे, साथ-ही-साथ यह ग्रन्थ शोध छात्रों एवं शोधपत्रों का संकलन हो।
प्रबुद्ध पाठकों के लिये भी उपयोगी सिद्ध होगा।
गोविनद नारायण टण्डन
अनन्त चतुर्दशी वीर निर्वाण सं० 2503 26 सितम्बर 1977.
कुलपति
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