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________________ १७१ दशमोऽध्यायः मोहक्षयाज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच केवलम् ॥१॥ । बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्याम् ॥ २ ॥ कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः ॥ ३ ॥ औपशमिकादिभव्यत्वाभावाचान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः ॥ ४ ॥ तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्या लोकान्तात् ॥ ५ ॥ पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्वन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच तद्गतिः क्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्रबोधितज्ञानावगाहनान्तरसङ्ख्याल्पबहुत्वत. साध्याः ॥ ७ ॥ १ -म्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः ॥२॥ स० रा. लो। २ इसके स्थान में स. रा. लो. में 'औपशमिकादिभव्यस्वानां च' और 'अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः' ऐसे दो सूत्र हैं। ३ 'तद्गतिः' पद स० रा. ग्लो० में नहीं है और इस सूत्र के बाद 'आविद्धकुलालचक्रवव्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदमिशिखाव और धर्मास्तिकायाऽभावात्' ऐसे दो सूत्र और हैं जिनका मतलब भाष्य में ही आ जाता है ।
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
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