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________________ प्रथमप्रकाश. ७३ फलने दलन चलनमा धर्मास्तिकाय मददगार बे. वली जीव अने पुजलने स्थिर थवामां, जेम वटेमार्गने वृनी छाया तेम, अधर्मास्तिकाय सहायकारी बे. श्राकाशद्रव्य, अनंत प्रदेशवालुं होतुं कुं, लोकालोकने व्यापी ने अवकाश देतुं कुं रधुं बे. कालना अपु जुटा थइने लोकाकाशमां व्यापी रहेला बे; श्रने मुख्य काल पदार्थोनुं बदलावापएं तेज बे. ज्योतिःशास्त्रमां जे कालनुं ( समय श्रादिकनुं ) परिमाण कहेतुं बे. तेने ज्ञानीए व्यावहारिक काल कहेलो बे. आ पृथ्वीमां जे नवी जुनी वस्तु थया करे बे, ते सर्व कालनुं माहात्म्य बे. कालक्रीडाथी विडंबित थला पदार्थों, वर्तमानमांथी अतीतमां जाय बे. तथा जावी होय ते वर्त्तमानरूपें थाय बे. एवी रीतें जीव तत्वनुं खरूप कयुं. मन, वचन, अने कायानुं जे कार्य, ते श्राश्रव कदेवाय, तेना बे नेदो शुभ शुभ, शुभनो हेतु ते शुभ, अने शुजनो हेतु ते अशुभ. एवी रीतें श्रवतत्व क. घावनुं जे रोका ते संवर तथा जवना हेतुरूप कर्मोनुं जे जरी जवं ते निर्जरा कहेवाय. एव रीतें संवर तथा निर्जरा तत्व जाणवां व संवर ने निर्जरानुं स्वरूप जावनार्उमां त्र्यगल विस्तारथी कहेवाशे, तेथी पुनरुक्तिना जविस्तार कर्यो नयी. कषायपणाथी कर्मयोग्य पुरुलोने जीव ग्रहण करे बे, तेने, जीवने स्वतंत्रताना (परतंत्रपणाना) कारणरूप, बंध तत्व जाणवुं ते बंध, प्रकृति, स्थिति अनुभाग ने प्रदेश नामें चार प्रकारनो बे, मां प्रकृतिबंध ज्ञानावरणादिक नेदोथी आठ प्रकारनो बे. ते आठ भेदो नीचे प्रमाणे बे. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र अने अंतराय, नामना बे. कर्मोंनो नानो मोटो जे काल, ते स्थितिबंध कहेवाय, छाने विपाकमां जे रस आपे ते अनुभाग, बंध कदेवाय, अने कर्मोंना जागनी जे कल्पना ते प्रदेशबंध कहेवाय. मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय, अने योग. ए पांचे बंधना हेतु बे, एवी रीतें बंधतत्वनुं स्वरूप क. हवे बंधहेतुनो नाव थवाथी, अने चार घातिकर्मोंनो दय थवाथी, केवलकान थाय बे, तथा बाकीनां चार १०
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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