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________________ प्रथमप्रकाश. ५७ अनि रहेलो , ते वृक्ष शी रीतें नवपद्धव थ शके ? माटे तमो पोतेज विचार करी, लोखंमना नाव सरखा था हस्तिस्कंधथी उतरी नवसमुज्ने तरवाने श्लो? (ते सांजली) बाहुबलि मुनीश्वरे विचार्यु के, वृक्षपर चडेली वहीनी पेठे मारा शरीरने वाली हस्तिनो संगम शी रीतें बे ? वती कदाच समुज पोतानी मर्यादा बोडे, पर्वतो चलायमान थाय, तोपण, आ प्रजुनी शिष्य एवी ब्राह्मी तथा सुंदरी को वखते पण जूडं बोले नहीं.!!! अरे!!! हवे याद श्राव्यु! मारीपासे मानरूपी मदोन्मत्त तो खडोज रह्यो बे, अने तेणेज ज्ञानरूपी फलवाला विनयरूपी मारा वृदने जांगी नाख्युंडे. धिक्कार , मारा था विचारने!!! के हुँ नानाजाने केम वंदन करूं ? तपथी मोटा एवा तेउप्रत्ये हु मिथ्याउकृत दलं ९. माटे हवे सुर असुरोथी, नमाएला प्रजुपासे जश, ते नाना जाने तेऊना शिष्यना पण परमाणु सरखो यश, तेमने वंदन करूं!!! पली जेटलामां ते महामुनि पगडं उपाडी चालवा जाय , के तुरत तेमने मोदरूपी मेहेलना छारसर "केवलज्ञान" उत्पन्नथयु. एवी रीतें केवलज्ञाननी लक्ष्मीथी हाथमा रहेला आमलांनी पेठे जगत्ने जोता, ते बाहुबली महामुनि, प्रजुनिपासे केवलीनी सजामां जश् बेग. हवे जरत राजा पण, चौद महारत्नोथी आश्रित थया थका, तथा चोसठ हजार स्त्रियोवाला, अने नव निधानना स्वामी थयाथका, संपत्तिरूपी वेलना फल सरखा धर्म, अर्थ, काम अने राज्यने परस्पर विरोधविना जोगवता थका कालनिर्गमन करवा लाग्या. हवे एक रुषजदेव प्रजुपण विहार करता थका अष्टापदपर्वतपर गया, तथा त्यां प्रजुने वांदवाने नरतराजा पण गया त्यां सुरअसुरोथी पूजनीय, तथा समवसरणमां बेठेला प्रजुने त्रण प्रदक्षिणा दश्ने, नमस्कार करीने स्तुति करवा लाग्या के, हे प्रजो, मूर्त्तिमान् विश्वास सरखा, पिंडरूप थएला सकृत्त (सदाचरण) सरखा, सघलां जगतना प्रसाद सरखा, मूर्तिमान् ज्ञानना राशि सरखा, पु. एयना ढगला सरखा, सघला लोकना सर्वख सरखा,देहधारी संयम सरखा, रूपवाला उपकार सरखा, पगें चालता शील सरखा, देहधारि दमा सरखा, योगनां रहस्य सरखा, एकग थएला जगत्ना वीर्य सरखा, निष्फल सिद्धिना उपाय सरखा, मूर्त्तिमान् मैत्री सरखा, देहधारी करुणा स
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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