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योगशास्त्र.
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अर्थः- मध्यमां रहेढुं, तथा अधिकृतपाणि ने नाम जेतुं, एवा प्रणवें करीने गर्जित, तथा खुणामां रेफवाएं, तथा सेंकडो ज्वालाउँथी श्राकुस थएबुं चारे बाजुथी अनुखारयुक्त एवा श्रकार श्रादिक ब खरोथी विं. टायेधुं. बहारना खुणाउँमा खस्तिकोथी चिह्नित थयेवं, तथा तेनी अंदर ख एवा अदरोनी मध्यमां रहेढुं, तथा चारे पडखे विसर्गसहित यकारवावं, एवी रीतना यंत्रने वायुना समूहथी आवृत थएवँ कल्पीने, वन्ने पगोपर, हृदयमां, मस्तकें तथा सांधाउँमा राखवू; पबी ते बुद्धिमान् माणसें सूर्योदय वखते सूर्यने पबाडी राखीने, पोतानुं आयुष्य जोवा माटे पोतानी बायाने जोवी; तेमां जो संपूर्ण बाया देखाय, तो मृत्यु न थाय, पण जो कर्ण न देखाय, तो बार वरसें मृत्यु थाय, तथा हाथ, बांगली, . स्कंध, केश, पडखां अने नासिकानो जो दय देखाय, तो अनुक्रमें दश, श्रा, सात, पांच, त्रण अने एक वरसें मृत्यु थाय; तथा मस्तक अने । डाढीनो जो दय देखाय, तो ब मासे मृत्यु थाय, तथा कंठनो क्षय जोवाथी एक मासमां, श्रने आंखोनो क्षय जोवाश्री अग्यारदिवसें मृत्यु : थाय; तथा बिऊ सहित जो हृदय देखाय तो सात दिवसें मृत्यु थाय, । तथा जो बे बाया देखाय तो ते बखतेज मृत्यु पामे.
हवे यंत्रना प्रयोगने उपसंहरता थका विद्यायें करीने कालज्ञानतुं स्वरूप कहे .
इति यंत्रप्रयोगेण, जानीयात्कालनिर्णयं॥
यदि वा विद्यया विद्या, हृदयमाणप्रकारया ॥२०४॥ अर्थः- एवी रीतें यंत्रना प्रयोगथी कालनो निर्णय जाणवो, अथवा हवे कहेवाना प्रकारथी विद्यायें करीने पण जाणवो.
हवे सात श्लोकोयें करीने ते विद्या कहे बे, प्रथमं न्यस्य चूडायां, स्वाशब्दमोंच मस्तके ॥
हिं नेत्रहृदये पंच, नाभ्यब्जे दादरं ततः॥२०॥ अर्थः- पेहेलां शिखामा "खा" शब्दने, अने मस्तकपर " " शब्दने, नेत्र अने हृदयमां पांच " दि" शब्दने तथा नानिकमलपर "हा"